जयंती विशेष: बला की खूबसूरत साधना को राज कपूर ने क्यों कहा था, कभी नहीं बन पाओगी एक्ट्रेस?

ख़ूबसूरत और दमदार अभिनेत्री साधना की आज 82वीं जयंती है। उनका पूरा नाम साधना शिवदसानी था।

साधना का नाम उन गिनी चुनी अभिनेत्रियों में लिया जाता है, जो ना सिर्फ़ अपनी ख़ूबसूरती बल्कि अपनी दमदार अदाकारी की वजह से हिंदी सिनेमा में आज भी याद की जातीं हैं। 1963 में डॉयरेक्टर राज खोसला की सस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म वो कौन थी में उनके अभिनय के लिए हिंदी सिनेमा मे उन्हें “द मिस्ट्री गर्ल” के नाम से भी जाना गया।

साधना का जन्म आज ही के दिन यानी 2 सितंबर 1941 को अविभाजित भारत के कराची शहर में हुआ था। साधना के चाचा हरि शिवदसानी फ़िल्म इंडस्ट्री में करैक्टर रोल किया करते थे। साधना अपने मां-बाप की दूसरी संतान थीं। साधना की पैदाइश आज के पाकिस्तान के कराची शहर में हुई थी, जोकि उस वक़्त अविभाजित भारत का हिस्सा था। हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद उनका परिवार बॉम्बे में आकर बस गया। साधना अपने माता-पिता की बचपन से ही लाडली थीं। साधना का नाम उनके पिता नें अपनी पसंदीदा बंगाली अभिनेत्री साधना बोस के नाम पर साधना रखा था।

साधना जब सिर्फ़ 15 साल की थीं, तभी से वह कॉलेज के ड्रामा वगैरह में हिस्सा लेने लगी थीं। उनकी एक्टिंग का टैलेंट ज़्यादा दिनों तक लोगों की नज़रों से छुप नहीं सका। इसी बीच एक प्रोड्यूसर की नज़र साधना पर पड़ी, उन्होंने एक रुपये का टोकन मनी देकर साधना को अपनी सिंधी फ़िल्म अबाना के लिए साइन कर लिया। फ़िल्म के प्रमोशन के दौरान उनकी एक तस्वीर मैगज़ीन में छपी। जिसे उस दौर के मशहूर प्रोड्यूसर शशिधर मुखर्जी नें जब देखा तो पहली नज़र में साधना उन्हें अपनी फ़िल्म लव इन शिमला की हीरोइन के लिए पसंद आ गईं।

प्रोड्यूसर शशिधर मुखर्जी साधना को अपने साथ हिमालय एक्टिंग स्कूल ले गए। जहां उन्होंने अपने बेटे जॉय मुखर्जी के साथ उन्हें साल 1960 में अपनी फ़िल्म लव इन शिमला में बतौर लीड एक्ट्रेस लॉन्च किया। इस फ़िल्म को आर.के. नय्यर ने डॉयरेक्ट किया था। फ़िल्म लव इन शिमला सुपर हिट साबित हुई। इस फ़िल्म के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई सुपरहिट फ़िल्में हिंदी सिनेमा को दीं।

साधना पहली बार जब साल 1955 में राजकपूर की फ़िल्म श्री 420 के एक गाने के लिए आईं थी। तब उनकी एक छोटी सी बात पर राजकपूर के साथ अनबन हो गई, जिसके बाद से राजकपूर को वह नापसंद करने लगीं थीं। हुआ यह था कि साधना अपने हेयर स्टाइल पर ख़ास ध्यान देती थीं। जोकि राजकपूर को बिल्कुल पसंद नहीं था। ऐसे में राजकपूर ने सेट पर उनसे गुस्से में कहा कि एक्टिंग छोड़कर उन्हें शादी कर लेनी चाहिए। उनकी इस बात पर साधना को काफ़ी गुस्सा आया, वह सेट छोड़कर वहां से चली गईं। हालांकि उसके कुछ ही समय बाद दोनों ने साल 1964 की फ़िल्म दूल्हा-दुल्हन में एक साथ काम किया, लेकिन फ़िल्म ज़्यादा क़ामयाब नही हो पाई।

साधना हिंदी सिनेमा की एक ख़ूबसूरत अभिनेत्री थीं। उस पर उनका हेयर स्टाइल उनको और आकर्षक बनाता था। उनका हेयर स्टाइल उस ज़माने में इतना पॉपुलर हुआ था कि उसे साधना कट नाम दे दिया गया था। साधना ने साल 1966 में अपनी पहली फ़िल्म लव इन शिमला के डॉयरेक्टर आर. के. नय्यर से शादी की थी। मशहूर अभिनेत्री बबिता उनकी चचेरी बहन थीं।

साधना को बचपन से ही एक्ट्रेस बनने का शौक़ था। इसीलिए हिंदुस्तान के बंटवारे के बाद उनके पिता नें बॉम्बे में ही बसने के लिए सोचा। बॉम्बे में उनके भाई हरि शिवदसानी फ़िल्मों में करैक्टर रोल किया करते थे। साधना के पिता ने अपनी बेटी के शौक को पूरा करने के लिए काफ़ी जद्दोजहद किया। इसके बाद साधना को राजकपूर नें साल 1955 में रिलीज़ हुई अपनी फ़िल्म श्री 420 के एक गाने (मुड़ मुड़ के ना देख मुड़ मुड़ के) में बतौर कोरस डांसर साइन किया। इस गाने में लीड डांसर थीं अभिनेत्री नादिरा। इसी गाने की शूटिंग के दौरान उनकी राजकपूर से काफ़ी अनबन हो गई थी। राजकपूर नें साधना को तब यहां तक कह दिया था, कि वह कभी एक एक्ट्रेस नहीं बन पाएंगी, लेकिन जब साल 1960 में उन्होंने साधना को उनकी पहली फ़िल्म लव इन शिमला में देखा तो वह भी हैरान हो गए। तब उन्हें एहसास हुआ कि एक अच्छी अभिनेत्री को वह अपनी फ़िल्म से नहीं लॉन्च कर सके। कहा जाता है कि उस दौर में राजकपूर को नये एक्टर और एक्ट्रेस की पहचान करना बख़ूबी आता था, लेकिन साधना के मामले में वह भी धोखा खा गए थे।

ऐसा कहा जाता है कि अभिनेत्री नूतन की फ़िल्में देखकर ही साधना के दिल में भी फ़िल्म अभिनेत्री बनने का ख़्वाब पनपा था। वह अभिनेता देव आनंद की भी बहुत बड़ी फ़ैन थीं, जिनके साथ उन्होंने 1961 में हम दोनों  और 1962 में असली-नक़ली जैसी क़ामयाब फ़िल्मों में काम किया। साधना का शुमार 60 के दशक में हिंदी सिनेमा में सबसे ज़्यादा फ़ीस लेने वाली अभिनेत्रियों में किया जाता था।

साधना को उनकी सुपरहिट फ़िल्मों, जैसे लव इन शिमला, हम दोनों, परख, असली-नक़ली, एक मुसाफ़िर एक हसीना, वो कौन थी, प्रेम पत्र, मेरा साया, राजकुमार,  मेरे महबूब, आरज़ू, एक फूल दो माली, वक़्त, आप आए बहार आई, अनीता, गीता मेरा नाम के लिए आज भी याद किया जाता है। साधना का सिने कैरियर साल 1958 से शुरू होकर साल 1977 तक चला। 1974 में साधना ने क्राइम थ्रिलर फ़िल्म गीता मेरा नाम से निर्देशन की दुनिया में भी क़दम रखा था।

साधना की ख़्वाहिश थी कि जिस तरह उनके फैन्स उन्हें परदे पर देखते हैं और पसंद करते हैं। वह हमेशा उसी तरह याद की जाती रहें। साधना को बढ़ती उम्र के साथ थॉयराइड की दिक्कत पैदा हो गई, जिसके चलते वह धीरे-धीरे फ़िल्मों से दूर हो गईं और एक गुमनाम सी ज़िन्दगी जीने लगीं। बॉलीवुड से उन्होंने साल 1994 में पूरी तरह सन्यास ले लिया था।

साल 2002 में आईफ़ा ने साधना को हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाज़ा। 25 दिसंबर 2015 को मुंबई में 74 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। आज साधना भले हमारे बीच नही हैं लेकिन अपनी एक से बढ़कर एक यादगार फ़िल्मों के ज़रिए वह आज भी अपने फ़ैन्स के दिलों में ज़िंदा हैं।

(न्यूज़ नुक्कड़ के लिए अतहर मसूद का लेख)

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