जयंती विशेष: लता मंगेशकर…’मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे’
हिंदुस्तान की सबसे क़ामयाब और मशहूर गायिका स्वर-कोकिला, भारत-रत्न लता मंगेशकर की आज 94वीं जयंती है।
दुनियाभर में उनके करोड़ो प्रशंसक हैं, जो उन्हें देवी सरस्वती का अवतार मानते हैं। उनके गीतों को सुनकर कभी किसी की आंखें नम हुईं तो कभी सरहद पर खड़े जवानों को हौसला मिला। भारत सरकार ने उन्हें सितंबर 2019 में उनके 90वें जन्मदिन पर डॉटर ऑफ़ नेशन की उपाधि से सम्मानित किया था। लता मंगेशकर की शख्सियत को उनका ही गाया गाना ‘नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा, मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे’ बहुत ही अच्छे से परिभाषित करता है।
लता मंगेशकर का जन्म आज ही के दिन यानी 28 सितम्बर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक शास्त्रीय गायक और रंगकर्मी थे। उनके बचपन का नाम हेमा था। जिसे बदलकर उनके पिता ने अपने एक नाटक भावबंधन के एक महिला किरदार लतिका के नाम पर लता कर दिया। उनका परिवार गोवा के मंगेशी से ताल्लुक रखता था, इस वजह से मंगेशकर उनके परिवार का सरनेम हो गया।
घर में संगीत का माहौल होने की वजह से लता जब 5 साल की थीं, तभी से उन्होंने अपने पिता से संगीत सीखना शुरू कर दिया था। लता मंगेशकर अपने सभी भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। उनके बाद परिवार में उनकी बहनें आशा भोंसले, मीना मंगेशकर, उषा मंगेशकर और भाई ह्रदयनाथ मंगेशकर थे। इन सभी ने भी संगीत की दुनिया में ख़ूब नाम किया। जब लता 5 की थीं, तब उन्हें स्कूल भी भेजा गया लेकिन स्कूल के पहले ही दिन टीचर से हुई अनबन की वजह से वह फिर कभी स्कूल नही गईं। हुआ यह था कि लता अपने स्कूल के पहले दिन अपनी छोटी बहन आशा को भी अपने साथ ले गईं थीं, जिस पर टीचर नें उन्हें डांटा तो फिर वह दोबारा स्कूल नहीं गईं। 1942 में लता मंगेशकर जब 13 साल की हुईं, तब उनके सर से पिता का साया हमेशा हमेशा के लिए उठ गया। परिवार में सबसे बड़ा होने के नाते पूरे परिवार का ज़िम्मा उन पर आ गया। परिवार में उनकी माँ, छोटी बहनें आशा, मीना, उषा और सबसे छोटे भाई हृदय नाथ मंगेशकर थे।
शुरू में लता मंगेशकर ने बतौर बाल कलाकार फ़िल्मों में अभिनय करना शुरू किया। 1945 में आई फ़िल्म “बड़ी मां” में उन्होंने मैडम नूरजहां की छोटी बहन का किरदार निभाया। चूंकि लता 14 साल की उम्र से ही स्टेज शोज़ करके वाहवाही बटोरने लगी थीं, तो वहीं से उनकी गायकी का सफ़र भी शुरू हो गया। लता मंगेशकर को फिल्मों में गाने का सबसे पहला ब्रेक 1947 में बसंत जोगलेकर की फ़िल्म “आपकी सेवा” में मिला। तब उनकी उम्र महज़ 18 साल की थी, हालांकि उसमें उन्हें फ़िल्म की अभिनेत्री के लिए गाने का मौका नहीं मिला था। उस गाने के रिलीज़ होने के बाद फ़िल्म इंडस्ट्री के तमाम निर्माता, निर्देशकों ने यह कहकर लता मंगेशकर की आवाज़ को नकार दिया कि यह आवाज़ बहुत पतली है, इसे हम फ़िल्म की अभिनेत्री के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते। क्योंकि उस दौर में मैडम नूरजहां, राजकुमारी, ज़ोहराबाई अम्बालेवाली, उमा देवी, अमीर बाई जैसी गायिकाओं का बोलबाला था। उसके बाद लता मंगेशकर को फ़िल्मों में गाने के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ा।
मास्टर ग़ुलाम हैदर उस वक़्त फ़िल्म इंडस्ट्री के मशहूर म्युज़िक डॉयरेक्टर थे। उन्होंने जब लता की आवाज़ सुनी तो वह उनसे बहुत मुतास्सिर हुए। वह उन्हें लेकर कई बड़े बड़े फ़िल्म निर्माता-निर्देशकों के पास गए। उन्होंने उन सभी से कहा कि इस लड़की को आप अपनी फ़िल्म में गाने का मौका दीजिये, यह बहुत अच्छा गाती है। लेकिन सभी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि इस लड़की की आवाज़ बहुत पतली है, यह फ़िल्मों में अभिनेत्रियों के लिए प्लेबैक नहीं कर पाएगी। जब सब जगह से नाकामी ही हाथ लगी, तब लता मंगेशकर और मास्टर ग़ुलाम हैदर काफ़ी मायूस हो गए।
लेकिन फिर 1948 में संगीतकार मास्टर ग़ुलाम हैदर ने ख़ुद अपनी ही फ़िल्म “मजबूर” में लता मंगेशकर को फ़िल्म की हीरोइन के लिए गाने का पहला मौका दिया। गीत को लिखा था नाज़िम पानीपती ने और गीत के बोल थे “दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोड़ा तेरे प्यार ने। यह गाना लता का पहला सुपरहिट गाना बना। इस गाने की क़ामयाबी ने लता मंगेशकर को फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर गायिका पहचान दिलाई। उसके बाद साल 1949 में फ़िल्म निर्माता-निर्देशक कमाल अमरोही की फ़िल्म महल का गाना “आएगा आनेवाला” की क़ामयाबी ने उन्हें रातोंरात फ़िल्म इंडस्ट्री में एक बेहतरीन गायिका की कतार में लाकर खड़ा कर दिया। यहीं से शुरू हो गया उनकी ख़ूबसूरत गायकी का शानदार सफ़र।
शुरू शुरू में लता मंगेशकर की गायकी पर मैडम नूरजहां की आवाज़ का असर था, क्योंकि वह उन्हें अपना गुरु मानतीं थीं। लेकिन बाद में उन्होंने अपना ख़ुद का स्टाइल बनाया और फ़िल्म इंडस्ट्री पर छा गईं। एक बार की बात है कि फ़िल्म अंदाज़ के एक गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान संगीतकार नौशाद, लता मंगेशकर से कहते हैं, “लता जी इस गाने को ज़रा आप अपनी सहेली को याद करके गाइये”। अब लता जी हैरान हो गईं कि नौशाद साहब उनसे किस सहेली की बात कर रहें हैं। तभी नौशाद ने उनसे कहा कि “अरे लता जी मैं आपकी उन्हीं सहेली की बात कर रहा हूँ, जो इस वक़्त पाकिस्तान में हैं”। तब उन्हें याद आया कि नौशाद उनसे मैडम नूरजहां की बात कर रहे हैं। जवाब में लता मंगेशकर ने उनसे कहा कि “मैं मैडम नूरजहां की बराबरी तो नहीं कर सकती लेकिन कोशिश ज़रूर करूंगी, कि उनकी तरह गा पाऊं”। वह गाना था, 1949 में आई फ़िल्म अंदाज़ का, जिसके बोल थे “उठाये जा उनके सितम और जिये जा”।
एक बार अभिनय सम्राट दिलीप कुमार ने लता मंगेशकर से कहा कि लता तुम जब गाने गाती हो तो तुम्हारी गायकी में तुम्हारा मराठी लहजा नज़र आता है। यह बात लता को बहुत लग गई। उसके बाद उन्होंने एक उर्दू के टीचर से बक़ायदा उर्दू सीखी, ताकि दिलीप कुमार ने जो कमी उनकी गायकी में बताई उसे दूर किया जा सके। उसके बाद तो लता मंगेशकर ने उर्दू के बोलों वाले गीतों के साथ पूरा पूरा इंसाफ़ किया। लता मंगेशकर दिलीप कुमार को अपना बड़ा भाई मानती थीं, वह हर साल रक्षाबंधन पर दिलीप कुमार को राखी बाँधने उनके घर जाया करती थीं।
मशहूर शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने लता मंगेशकर और उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान से जुड़ा एक दिलचस्प क़िस्सा अपने एक इंटरव्यू में सुनाया था। वह बताते हैं कि एक बार वह उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान से मिलने उनके घर गए हुए थे। वह दोनों बात ही कर रहे थे कि तभी उनके घर के नीचे होटल पर लता मंगेशकर का एक गाना बजा। उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान ने पंडित जसराज से ख़ामोश रहने को कहा। उसके बाद वह बड़े ग़ौर से नीचे रेडियो पर बज रहे लता के गाने को सुनने लगे। जब गाना ख़त्म हुआ तो उस्ताद बड़े अली ख़ान मुस्कुराए और बोले ” कमबख्त कभी बेसुरी नहीं होती”। वह गाना था, 1952 में आई फ़िल्म “अनारकली” का सुपरहिट गाना, जिसके बोल थे “ये ज़िन्दगी उसी की है जो किसी का हो गया, प्यार ही में खो गया”। जिसे लता मंगेशकर ने अपनी चाशनी जैसी मीठी आवाज़ में गाकर ख़ूबसूरत बना दिया था।
लता मंगेशकर तक़रीबन सात दशक तक हिंदी सिनेमा के संगीत पर छाईं रहीं। उन्होंने मधुबाला, नरगिस से लेकर प्रीती ज़िंटा, करीना कपूर तक तमाम अभिनेत्रियों को अपनी आवाज़ दी। मधुबाला तो अपनी हर फ़िल्म के कॉन्ट्रैक्ट पर फ़िल्म निर्माता से लिखवाने लगीं थीं, कि उनके लिए गाने सिर्फ़ लता मंगेशकर ही गाएंगी। लता मंगेशकर की आवाज़ कभी किसी भी अभिनेत्री पर अनफ़िट नहीं लगी। शाहरुख ख़ान ने तो एक बार लता मंगेशकर के सामने कहा था कि “काश मैं भी हिंदी फ़िल्मों की हीरोइन होता और लता जी मेरे लिए गाने गातीं”।
लता मंगेशकर नें अपने पूरे कैरियर में अनगिनत संगीतकारों के लिए गीत गाए। उन्होंने मास्टर ग़ुलाम हैदर, अनिल बिस्वास से लेकर ए. आर. रहमान और राहुल शर्मा तक संगीतकारों के साथ काम किया। उन्होंने मोहम्मद रफ़ी और मन्ना डे से लेकर उदित नारायण और सोनू निगम तक के गायकों के साथ जुगलबंदी की। संगीतकार मदन मोहन ने लता मंगेशकर की गायकी को ख़ूब तराशा था। उन्होंने अपने ज़्यादातर गाने और ग़ज़लें उनसे ही रिकॉर्ड करवाई, जिसमें फ़िल्म वो कौन थी का गाना लग जा गले उन दोनों की जोड़ी का सबसे यादगार गीत माना जाता है।
बहुत सारी फ़िल्में महज़ इस वजह से सुपरहिट हुई, क्योंकि उसमें लता मंगेशकर के गाए गाने काफ़ी लोकप्रिय हुए और इस वजह से फ़िल्म भी सुपरहिट हो गई। अपने सहज सरल स्वभाव की वजह से लता फ़िल्म निर्माताओं, निर्देशकों और संगीतकारों की पहली पसंद बन गई थीं। हर गाने को लेकर उनकी मेहनत गाने में साफ़ साफ़ नज़र आती थी। हर मूड के गाने को लता मंगेशकर अपनी ख़ूबसूरत गायकी से ख़ास बना देती थीं। चाहे वो रोमांटिक गाना हो, या फिर किसी राग पर आधारित गाना हो, चाहे भजन हो या फिर देशभक्ति में डूबा हुआ गीत हो। उनके गाए गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की भी आँखें भर आई थीं। भारत की स्वर-कोकिला लता मंगेशकर नें 20 भाषाओं में तक़रीबन 30 हजार गाने गाए।
लता मंगेशकर को बहुत सारे अवॉर्ड से नवाज़ा गया। उन्हें तक़रीबन 6 बार सर्वश्रेष्ठ गायिका का फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड मिला था। लेकिन उन्होंने 1970 के बाद फ़िल्म फ़ेयर को कह दिया कि वह अब सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार नहीं लेंगी, उनकी बजाय नए गायकों को यह पुरुस्कार दिया जाना चाहिए। इसके अलावा उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ गायिका का राष्ट्रीय पुरुस्कार दिया गया। भारत सरकार ने उन्हें 1969 में पद्मभूषण, 1989 में हिंदी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फ़ाल्के पुरुस्कार, 1999 में पद्मविभूषण और 2001 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत-रत्न से नवाज़ा।
6 फ़रवरी 2022 को भारत की स्वर-कोकिला लता मंगेशकर ने इस फ़ानी दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। यक़ीनन उनके जाने से संगीत के एक युग का अंत हो गया। उनकी आवाज़ के दीवाने पूरी दुनिया में हैं। फ़िल्म इंडस्ट्री में सब उन्हें प्यार से लता दीदी कहकर बुलाते थे। आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका गाया गाना मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे उनको हमेशा हम सब के बीच मौजूद रखेगा।
(न्यूज़ नुक्कड़ के लिए अतहर मसूद का लेख)