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मुस्लिम धर्मगुरुओं का राज ठाकरे को जवाब, बताया लाउडस्पीकर पर अजान और रोड पर क्यों पढ़ते हैं नमाज

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे द्वारा मस्जिदों में लाउडस्पीकर पर अजान देने और रोड पर नमाज पढ़ने को लेकर सवाल खड़े किए गए थे। इस मुद्दे पर पूरे देश में एक बार फिर लाउडस्पीकर पर अजान देने को लेकर बहस जारी है। लोग अलग-अलग और अपने तरीके से बयान दे रहे हैं। लेकिन कोई यह जानने की कोशिश नहीं कर रहा है कि आखिर मस्जिदों में लाउडस्पीकर से क्यों अजान दी जाती है, और मुस्लिम समाज की ऐसी क्या मजबूरी है कि वह रोड पर कई बार नमाज पढ़ने को मजबूर हो जाता है। राज ठाकरे ने इसे लेकर मुस्लिमों से सवाल पूछा था। इससे पहले गायक सोनू निगम भी यह सवाल पूछ चुके हैं। ऐसे में इस मुद्दे पर ‘न्यूज़ नुक्कड़’ ने दो मुस्लिम धर्मगुरुओं से बात की। पहले धमगुरु हैं मुफ्ती तजम्मुल साहब जो उत्तर प्रदेश में मऊ जिले के मदरसा अहले सुन्नत हनफिया बहरुल उलूम में पढ़ाते हैं, और दूसरे हैं कारी परवेज साहब जो आगरा में गांधीनगर के मदरसा फैजुल उलूम साबरिया के प्रिंसिपल हैं। ‘न्यूज़ नुक्करड़’ ने इन दोनों धर्मगुरुओं से राज ठाकरे और सोनू निगम जैसे तमाम लोगों के सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की। पेश है दोनों धर्मगुरओं से ‘न्यूज़ नुक्कड़’ द्वारा की गई बातचीत का अंश।

मुफ्ती तजम्मुल साहब से सवाल: लाउडस्पीकर पर अजान देने की क्या जरूरत है?

देखिए जब अजान देने के लिए लाउडस्पीकर की जरूरत नहीं है तो पूरी दुनिया में जितने भी आज तक आविष्कार किए गए उनकी भी क्या जरूर है। जहाज, इंटरनेट, मोबाइल और ट्रेन यह सारी चीजें तो उस दौर में नहीं थीं। सवाल यह है कि फिर इन चीजों का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है। क्या इनका भी इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

अगर वे ऐसा कहते हैं कि अजान से लोगों को दिक्कतें होती हैं तो यह उनकी भूल है। इस्लाम में कहा गया है कि अजान की आवाज जब लोगों के कानों तक पहुंचती है तो उससे लोगों को काफी फायदा होता है। जो बीमार होते हैं, उन्हें अजान से फायदा पहुंचता है। अजान से बीमार लोगों की जो परेशानी होती है वह दूर होती है। ऐसा इस्लाम में कहा गया है।

बिना लाउडस्पीकर पर अजान देने से सभी लोगों तक अजान की आवाज नहीं पहुंच पाती है। यही वजह है कि अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किया जाता है। अगर वे कहते हैं कि इससे किसी को दिक्कत होती है तो वे इस बात को इस लिए कह रहे हैं, क्योंकि वे खुद अजान से नफरत करते हैं। वे नहीं चाहते हैं कि अजान दी जाए। अगर सच में उन्हें लाउडस्पीकर से परेशानी होती तो उन्हें मंदिरों में लाउडस्पीकर पर बजने वाले घंटो, वहां काफी देर तक होने वाले कीर्तन से भी परेशानी होती। अजान तो 2 से 3 मिनट में खत्म जाती है, लेकिन मंदिरों में सुबह-शाम होने वाली कीर्तन और आरती तो काफी देर तक चलती रहती है। आखिर उन्हें इससे क्यों नहीं परेशानी होती। उन्हें अगर परेशानी होती तो दनों ही होनी चाहिए।

मुफ्ती तजम्मुल साहब: क्या इस्लाम में लाउडस्पीकर पर अजान का देना जूरूरी है?

इस्लाम में लाउडस्पीकर पर अजान देना जरूरी नहीं है, लेकिन आज के वक्त में जब जनसंख्या इनती बढ़ गई है। लोग दूर-दूर तक बसे हुए हैं। ऐसे में उन तक अजान की आवाज पहुंचाने के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किया जाता है।

लाउडस्पीकर पर अजान देने को लेकर दूसरे मुस्किल धर्मगुरु कारी परवेज से सवाल

देखिए इस्लाम में अजान एक ऐलान है नमाज के लिए, उन लोगों के लिए जो नमाज पढ़ते हैं, और अगर नहीं पढ़ते तो उनके लिए भी है। अजान में लोगों से यह कहा जाता है कि आओ नमाज पढ़ें, उस खुदा को याद करें, जिसने तुम्हें इस दुनिया में भेजा है। अजान का मकसद लोगों को मस्जिदों तक बुलाना है, ताकि एक साथ नमाज पढ़ी जा सके।

कारी परवेज से सवाल: जिस वक्त इस्लाम वजूद में आया, उस वक्त बिना लाउडस्पीकर के ही अजान होती थी तो अब लाउडस्पीकर से क्यों?

जमाने के साथ चीजें भी बदलती हैं। कुरान में अल्लाह कहता है कि वक्त के साथ मैं तुम्हें बहुत सारी चीजें दूंगा, जिससे तुम फायदा उठा सकोगे। कल तक जब गाड़ियां नहीं थीं, हवाई जहाज नहीं थे, ट्रेनें नहीं थीं तो लोग पैदल यात्रा करते थे। आज सरी चीजें है तो लोग इनका इस्तेमाल करते हैं। आज आबादी बढ़ी है, जिस वक्त इस्लाम वजूद में आया उस वक्त आबादी इतनी नहीं थी। आज लाउडस्पीकर है तो उससे एक बड़ी आबादी और दूर-दूर तक बसे लोगों तक अजान पहुंचाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। इस्लाम में इस पर रोक भी नहीं है। इस लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल मस्जिदों में होता है। वह भी सिर्फ 2 से 3 मिनट के लिए। ऐसे में इससे किसी को क्या परेशानी है। हां, इस्लाम में लाउडस्पीकर पर अजान देना फर्ज (जरूरी) नहीं है। जैसा कि मैने कहा, अजान एक ऐलान है। ऐसे में अजान का ऐलान ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे इसलिए लाउ़़डस्पीकर का इस्तेमाल किया जाता है।

मुफ्ती तजम्मुल साहब से सवाल: अक्सर यह देखा जाता है कि जुमे के दिन जब लोगों को मस्जिदों में जगह नहीं मिलती तो वे सड़कों पर नमाज पढ़ते हैं, ऐसे में नमाज रोड पर पढ़ने की क्या जरूरत है, घर में क्यों नहीं पढ़ते?

देखिए इस्लाम में नमाज जमात के साथ पढ़ने का आदेश दिया गया है। (जमात का मतलब यह है कि नमाज को अकेले नहीं बल्कि एक से ज्यादा लोगों के साथ मस्जिदों में पढ़ने को कहते हैं, और इस नमाज को मस्जिद के इमाम पढ़ाते हैं।) जमात के साथ नमाज पढ़ने का आदेश का मतलब आप इस उदाहरण से अंदाजा लगा सकते हैं कि एक बार पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा था कि जो लोग जमात के साथ नमाज नहीं पढ़ते है, घरों में नमाज पढ़ते हैं, अगर मुझे घरों में रहने वाली महिलाओं और बच्चों का ख्याल नहीं होता तो मैं उनके घरों को आग के हवाले कर देने का आदेश दे देता।

पैगंबर मोहम्मद साहब की इस बात से यह साफ होता है कि इस्लाम में नमाज जमात के साथ पढ़ने के लिए कहा गया है, और यही वजह है कि हम जमात के साथ नमाज पढ़ते हैं। और जुमे के दिन जब जगह नहीं मिलती तो मजबूरन रोड पर खड़े होकर लोग जमात के साथ नमाज पढ़ते हैं। ऐसा नहीं है कि रोड पर नमाज नहीं होती, वहां पर भी नमाज हो जाती है।

कारी परवेज साहब से जुमे की नमाज रोड पर पढ़ने को लेकर सवाल

जुमे की नमाज इस्लाम में खास होती है। इस्लाम में जुमे को हफ्ते की ईद कहा गया है। जुमे की नमाज हम अकेले नहीं पढ़ सकते हैं। इस्लाम में इस नमाज को जमात के साथ ही पढ़ने का आदेश दिया गया है। यही वजह है कि जो लोग भी जहां भी रहते हैं, वह जुमे के दिन मस्जिद पहुंचते हैं। और जब मस्जिद में जगह नहीं मलती तो उन्हें मजबूरन रोड पर नमाज पढ़ना पड़ता है। लेकिन इसमें भी किसी को क्या परेशानी है। यह नमाज भी मुश्किल से 5 मिनट में खत्म हो जाती है।

मुफ्ती तजम्मुल साहब से सवाल: इस्लाम में जमात के साथ नमाज पड़ने के पीछे और क्या वजह है?

इस्लाम में जमात से नमाज पढ़ने का आदेश तो दिया ही गया है। इसके पीछे कई और वजह हैं, जिसका जिक्र इस्लाम से जुड़ी किताबों में है। जमात से नमाज पढ़ने को इस लिए भी कहा गया है कि जब आप अकले नमाज पढ़ेंगे तो आप किसी से मिल नहीं पाएंगे। आज के दौर में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि लोग अपने-अपने काम में व्यस्त रहते हैं। जब आप जमात के साथ 5 वक्त की नमाज पढ़ेंगे तो जाहिर है कि आप मस्जिदों में जाएंगे, वहां आप सभी लोगों से मिलेंगे। आपको इस बात का भी पता चलेगा कि कौन किस हालत में है, कौन भूखा है और कौन बीमार है। यह पता चलने पर आप उसकी मदद कर सकते हैं। यही नहीं जब आप एक जगह जमा होते हैं तो दूरियां मिटती हैं और एकता बढ़ती है। आपसी भाईचारा बढ़ता है, जोकि आज के दौर में कम देखने को मिल रहा है। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर इस्लाम में नमाज को जमात के साथ पढ़ने का आदेश दिया गया है।

जमात के साथ नमाज पढ़ने का एक और कारण है। इस्लाम में कहा गया है कि अगर आप अकेल नमाज पढ़ते हैं तो उसका सवाब (फायदा) आपको कम मिलता है। एक उदाहरण इस्लाम में दिया गया है कि अगर आप अकेल नमाज पढ़ते हैं तो आपको सिर्फ उस एक बार नमाज पढ़ने का ही सवाब (फायदा) मिलेगा, लेकिन जब आप जमात के साथ नमाज पढ़ते हैं तो आपको 27 गुना ज्यादा सवाब (फायदा) मिलेगा।

कुरान में यह कहा गया है, “जब भी तुम कोई काम करो उसे मिलकर करो, एक साथ करो चाहे वह इस्लाम से जुड़ा काम हो या फिर दुनयावी कोई काम हो। एकजुट और एक साथ होकर किसी भी काम को अंजाम दो। अगर अकेले करोगो तो तुम कमजोर रहोगे। साथ करोगो तो इससे तुम मजबूत रहोगे।” ऐसे में इस्लाम में जमात के साथ नमाज पढ़ने के आदेश को भी इन बातों को ध्यान में रखकर ही दिया गया है।

मुफ्ती तजम्मुल साहब से सवाल: आपको क्या लगता है, लाउडस्पीकर पर अजान और रोड पर नमाज पढ़ने का विरोध क्यों हो रहा है?

इस सवाल के जवाब में मैं कुरान की एक आयत का उदाहरण देना चाहता हूं, जिसमें कहा गया है कि इस्लाम का विरोध करने वाले तुम्हारे सामने आते हैं, चिकनी चुपड़ी बाते करते हैं, लेकिन उनके दिल में जलन है, वे इस बात से परेशान हैं कि आखिर किस तरह से इस्लाम का काम हो रहा है? कैसे इस्लाम फैल रहा है? मस्जिदें बन रही हैं और मदरसे बन रहे हैं, जहां से इस्लाम को फैलाने वाले ओलेमा (मौलान) बन रहे हैं।

मुफ्ती साहब ने कहा कि इस्लाम का विरोध करने वाले चाहते हैं कि कौन सा ऐसा काम किया जाए कि इस्लाम का काम रुक जाए। और यही वह है कि ये लोग मदरसों, मस्जिदों और इन जगहों पर होने वाले अजान और नमाज पर सवाल खड़े करते हैं।

कारी परवेज साबह से सवाल: 5 वक्त की जो नाम होती है, उसे पढ़ने के लिए अगर कोई मस्जिद में नहीं जा पाए तो क्या अकेले वह नमाज नहीं पढ़ सकता?

कोई भी बिना जमात के अकेले नमाज पढ़ सकता हैं, लेकिन उसमें भी कई कंडिशन हैं। अगर आपको कोई बीमारी या बड़ी परेशानी है। अगर आप कोई बिजनेस कर रहे हैं और आपको उसमें नुकसान का खतरा है तो आप नमाज वहीं पर अकेल पढ़ सकते हैं। लेकिन हमेशा यह कोशिश करनी चाहिए कि नमाज जमात के साथ ही पढ़ें।

‘न्यूज़ नुक्कड़’ यह उम्मीद करता है कि राज ठाकरे और उनके जैसे देश में रहने वाले लाखों लोगों को इस्लाम के इन धर्मगुरुओं के जवाब से उन सवालों का जवाब में मिल गया होगा, जिसमें वे अक्सर ये सवाल करते हैं कि मस्जिदों में लाउ़़डस्पीकर से अजान क्यों दी जाती है और रोड पर नमाज पढ़ने के लिए मुस्लिम समाज आखिर क्यों मजबूर है। आगे भी हमारी यह कोशिश होगी कि देश और किसी भी समाज के इस तरह के मुद्दों को बिना हंगामा किए सही ढंग से उठाया जाए, ताकि लोगों तक इन मुद्दों को लेकर सही सूचनाएं पहुंच सकें।

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