उत्तराखंड स्पेशल: जाको राखे साइयां मार सके न कोई, पढ़िये जल प्रलय में मौत को मात देने वाली मंजू रावत की दर्दनाक कहानी

देवभूम में रविवार को सैलाब आया था। तब से अब तक 5 दिन बाद भी चारों तरफ बर्बादी ही बर्बादी का मंजर है।

पांच दिनों से लगातार अलग-अलग मोर्चों पर रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है। जिंदगी की तलाश हो रही है। पहला मोर्चा एनटीपीसी की टनल है। जहां जिंदगी की तलाश हो रही है। तो दूसरा मोर्चा ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट है और वो पुल जो बह चुका है। पूरे देश की नजरें तपोवन में एनटीपीसी की टनल पर लगी हैं, जहां अब भी बचाव अभियान चल रहा है। चमोली में कुदरत ने जो तांडव मचाया है। उसकी तस्वीरें दिलों में खौफ भर देने वाली हैं। हर वक्त लोग इस उम्मीद से अपडेट ले रहे हैं कि शायद कोई जिंदगी बच जाए, लेकिन खबर डेडबॉडी मिलने की आ रही है।

खौफ भर देने वाले मंजर के बीच एक अच्छी खबर भी आई है। ऋषि गंगा में आई जल प्रलय के दौरान रैणी गांव की मंजू रावत ने मौत को मात दे दी है। वो पूरी तरह से सुरक्षित हैं, लेकिन एक वक्त ऐसा था जब उन्हें भी लग रहा था कि वो शायद अब नहीं बचेंगी। वो हादसे के बाद दो घंटे तक जिंदगी और मौत के बीच झूलती रही। उस दौरान वह अपने घर के अंदर थी। इस जलजले में मंजू का घर तबाह हो गया, लेकिन मंजू बालबाल बच गईं। 29 साल की मंजू बताती हैं कि हादसे के वक्त उनकी मां गांव के पास ही प्राकृतिक जलस्रोत पर पानी भरने गई थी। उस वक्त घर में मंजू के साथ उसकी दोस्त रजनी राणा और उसकी छह साल की बेटी प्रियंका थी।

सुबह करीब साढ़े नौ बजे जल प्रलय हुआ तो मंजू घर के कमरे में फंस गई, जबकि रजनी और प्रियंका बाहर भागने में कामयाब हो गए। देखते ही देखते मकान पूरी तरह से बस गया मंजू कमरे से बाहर नहीं आ सकी। वो छत में लगे लकड़ी के खंबों के नीचे बैठ गईं। उनके सिर और पांव में चोटें आई, करीब दो घंटे बाद यानि सुबह साढ़े ग्यारह बजे गांव के लोगों ने मंजू की ढूंढखोज की तो, उनके चिल्लाने पर लोगों ने पत्थर और लकड़ी को हटाकर मंजू को बाहर निकाला। मंजू का 6 कमरों का मकान पूरी तरह से खंडर बन गया है।

आपको बता दें कि मां के अलावा मंजू का दुनिया में कोई नहीं है। उसके पिता की लंबे समय पहले मौत हो गई थी। मंजू का कहना है कि कमरे में फंसे रहने के दौरान वह भगवान को याद कर मन में यही सोचती रही, कोई तो मुझे बचाने आओ।

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