उत्तराखंड में जंगलों की आग अब बेकाबू होती जा रही है। आग पर काबू पाने के लिए तीरथ सरकार कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।
धूं—धूं कर जल रहे जंगलों की आग को बुझाने के लिए अब हेलीकॉप्टरों से पानी का छिड़काव किया जा रहा है लेकिन विकराल रूप ले चुकी आग को काबू में किया जाना मुश्किल होता जा रहा है। आवासीय क्षेत्रों तक पहुंच चुकी इस आग से शासन प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है। इस बीच अब सभी की नजरें आसमान से होने वाली बारिश पर लगी हुई है जो इस आपदा से निजात दिला सकती है।
जंगल की इस आग से गढ़वाल मंडल अत्यधिक प्रभावित दिख रहा है। सुबह के जंगलों में अब तक 12 सौ से अधिक स्थानों पर आग लग चुकी है जिससे 14 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र में 37.95 करोड़ रुपए की वन संपदा का नुकसान हो चुका है। जंगलों में लगी इस आग को बुझाने में जंगलात विभाग ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। वन कर्मियों की छुटिृयां रद्द की जा चुकी हैं। 12 सौ से अधिक कर्मचारी आग बुझाने में जुटे हुए हैं लेकिन हालात बेकाबू होते जा रहे हैं।
राज्य सरकार की मांग पर केंद्र सरकार द्वारा बीते कल दो एमआई—17 हेलीकॉप्टर उपलब्ध करा दिए गए हैं जो आज सुबह से ही आग बुझाने के काम में जुटे हुए हैं। इनमें से एक हेलीकॉप्टर द्वारा गढ़वाल मंडल के टिहरी और श्रीनगर क्षेत्र में काम किया जा रहा है। दूसरा हेलीकॉप्टर कुमाऊं मंडल में कार्य कर रहा है। इन हेलीकॉप्टर से हेलीकॉप्टरों के द्वारा टिहरी व भीमताल झील से पानी लेकर आग पर काबू पाने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य में एक बार फिर वर्ष 2016 जैसे हालात पैदा हो गए हैं। जब वनाग्नि बुझाने के लिए सेना की मदद लेनी पड़ी थी तथा हाईकोर्ट द्वारा इसके दिशा निर्देश जारी किए गए थे।
उत्तराखंड में करीब 16 से 17 फीसदी जंगल चीड़ के हैं। इन्हें जंगलों की आग के लिए मुख्यतः जिम्मेदार माना जाता है। वहीं, पिछले साल कम बारिश होना भी जंगलों में आग लगने का एक कारण है। उन्होंने बताया कि बारिश न होने या कम होने से जमीन में आद्रता कम हो जाती है। जिससे पेड़ पौधे जल्दी ही आग पकड़ लेते हैं।
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