उत्तराखंड में फुलारी पर्व मनाया गया। क्या आप जानते हैं कि आखिर फुलारी पर्व क्यों मनाया जाता है?
हरयाली और प्रकृति के रूप में मनाए जाने वाले लोकपर्व फूलदेई को उत्तराखंड में मनाया जाता है, जो यहां की लोक प्रकृति का अनोखा पर्व है।
फूलदेई, छम्मा देई,
दैंणी द्वार, भर भकार,
य देई में हो, खुशी अपार,
जुतक देला, उतुक पाला,
य देई कैं, इस गाने के साथ।
चैत महीने की संक्रांति को फूलदेई का त्यौहार बड़े उल्लास से मनाया जाता है। सुबह की पहली किरण के साथ बच्चे बुरांश, भिटोर, फ्यूंली, आड़ू, खुमानी के फूल लेकर गांव में घर-घर जाकर हर घर की दहलीज में फूलों और चावल से पूजने निकल पड़ते हैं।
फूलों को थालियों और रिंगाल की छोटी-छोटी टोकरियों में सजाकर बच्चों की टोलियां गांव के हर परिवार के आंगन में जाकर उसके लिये आशीष मांगेंगे और घर की बुजुर्ग महिला बच्चों को आशीष देते हुए चावल, गुड़, रुपये देगी। बच्चों का यह उत्साह देखते ही बनता है।
देवभूमि के गांवों में साल दर साल घर खाली हो रहे हैं। गांव की देहरी भी सूनी हो रही हैं। गावों में जो देहरी आबाद हैं, उनके भीतर बस बुजुर्ग बसे हैं। उदासी की चादर में सिमटे इन गावों में फूलदेई के दिन गांव के बुजुर्ग अपनी देहरी में फूल और चावल चढ़ा कर त्यौहार के शगुन को पूरा करते नजर आ जाते हैं।
शहर और कस्बों में बस चुके पहाड़ी परिवारों के पास इतना समय नहीं की गांव के इस त्योहार के लिए समय निकाल सकें। जो सक्षम हैं उनके बच्चों को गांव के बच्चों का यह त्योहार मनाने में लाज अधिक आती है।
(अल्मोड़ा से हरीश भंडारी की रिपोर्ट)
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