उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर बिसात बिछ गई है। बीजेपी और कांग्रेस की ओर से सैनिकों की घोषणा भी कर दी गई है।
इन सबके बावजूद कांग्रेस के सेनापति हरीश रावत अभी भी रणभूमि में उतरने को लेकर सौ फीसदी तैयार नहीं हैं। वो कहां से चुनाव लड़ेंगे, यह तय नहीं कर पा रहे हैं। साल 2017 के चुनाव की तरह हरिद्वार ग्रामीण से लड़ेंगे या फिर कुमाऊं को अपनी कर्मभूमि बनायेंगे।
दूसरी ओर बीजेपी राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने को लेकर एकदम तैयार है। उसने धामी को नेता घोषित किया है। बीजेपी ने नामांकन से ऐन पहले 59 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर कांग्रेस से बाजी भी मार ली।
कांग्रेस की ओर से भी गिरते पड़ते बीती देर रात को 53 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी गयी है। पर कांग्रेस अभी भी 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार तय नहीं कर पायी है। जिन सीटों पर पार्टी उम्मीदवार तय नहीं कर पायी है उनमें नरेन्द्र नगर, टिहरी, देहरादून कैंट, डोईवाला, ऋषिकेश, ज्वालापुर, झबरेड़ा, रूड़की, खानपुर, लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण, चौबट्टाखाल, लैंसडॉन, सल्ट, लालकुआं, कालाढूंगी व रामनगर शामिल हैं।
यही नहीं खास बात यह है कि सूची में सर्वश्री हरीश रावत, हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हरक सिंह रावत और पार्टी के उपाध्यक्ष रणजीत रावत के नाम शामिल नहीं हैं। हरीश रावत तो खुद पार्टी के सेनापति हैं। उन्होंने दावा किया है कि वह चुनाव अभियान समिति के प्रभारी हैं। इसके बावजूद वह अपने चुनाव लड़ने को लेकर आश्वस्त नहीं हैं।
वो कौन सी सीट से चुनाव लडेंगे यह तय नहीं कर पाए हैं। हरीश रावत की मुश्किल यह है कि कुमाऊं में जिन सीटों पर अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किये गये हैं, उनमें सभी सीटें वर्तमान में बीजेपी के पास हैं। वर्तमान में उनके विधायक हैं। ऐसे में रावत सौ फीसदी सुरक्षित सीट की तलाश में हैं। उन्हें अल्पसंख्यक बहुल सीट की तलाश है।
कयास लगाए जा रहे हैं कि रावत के लिये हरिद्वार ग्रामीण और रामनगर सीट सबसे मुफीद हो सकती है लेकिन हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव लड़ने पर उनके राजनीतिक विरोधी इसे बड़ा मुद्दा बना सकते हैं। इसके बाद माना जा रहा है कि रामनगर सीट उनके लिये अधिक फायदेमंद हो सकती है। यहां अल्पसंख्यकों की संख्या यहां अच्छी खासी है लेकिन हरीश रावत को यहां से अपने धुर विरोधी रणजीत रावत से खतरा है। रणजीत रावत, हरीश रावत के लिये आसानी से मैदान खाली कर देंगे इसमें संशय है।
इनके अलावा हरीश रावत के पास कम विकल्प बचे हैं। माना जा रहा है कि अंत में वह लालकुआं से भी भाग्य आजमा सकते हैं, लेकिन बीजेपी भी इस स्थिति से वाकिफ है और उसने पहले से इस सीट पर अभी पत्ते साफ नहीं किये हैं। ऐसे में हरीश रावत के लिये एक तरफ कुआं तो दूसरी ओर खाई वाली स्थिति हो गयी है।
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में हरीश रावत दो-दो विधानसभाओं हरिद्वार ग्रामीण व किच्छा से एक साथ चुनाव लड़े थे लेकिन वो दोनों जगह से बुरी तरह से हार गए थे। इसीलिए वो इस बार फूंक फूंक कर कदम उठा रहे हैं।
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