उत्तराखंड पर्यटन के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। विश्व के पटल पर देवभूमि की एक अलग पहचान है। ऐसा नहीं है कि ये पहचान आज बनी है। बल्कि सैकड़ों सालों से उत्तराखंड की ये पहचान है।
राज्य की मौजूदा सरकार प्रदेश में पर्यटन को और बढ़ावा देने की बात कर रही है। इसके लिए कदम भी उठाए जा रहे हैं। ऐसे में अतीत की चादर में लिप्टे देवभूमि के उन इलाकों से पर्दा हटाने का समय आ गया है, जिन पर आज से सैकड़ों साल पहले अंग्रेज भी इतराया करते थे, चहलकदमियां करने के लिए यहां आया करते थे। वो खूबसूरत इलाका कहीं और नहीं, बल्कि उत्तरकाशी में है। आज भले ही इस इलाके को पर्यटन के लिहाज से कोई नहीं जानता हो, लेकिन एक समय था जब ये इलाका अंग्रेजों के लिए सबसे पसंदीदा जगहों में से एक था। ना सिर्फ अंग्रेजों बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों से भी सैलानी यहां का रुख करते थे।
हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी के मोरी प्रखंड के बंगाण इलाके की। कहते हैं कि आजादी से पहले ये इलाका अंग्रेजों के लिए सबसे पसंदीदा सैरगाह था। यहां गोकुल झोटाड़ी से करीब 6 किमीटर की पैदल दूरी पर बालचा बुग्याल में प्रकृति के खूबसूरत और अनमोल दृश्य को निहारा जा सकता है। यहां के मनोहर दृश्यों में समाने और अपने दिलो-दिमाग में उतारने के लिए आजादी से पहले यहां बड़ी संख्या में अंग्रेज सैलानी आते थे। बालचा बुग्याल में एक गेस्ट हाउस भी था, जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है।
कहते हैं कि बालचा बुग्याल में ही एशिया का सबसे मोटा देवदार का पेड़ भी है, जिसकी गोलाई 30 फीट है। इसी इलाके में दुचाणू से 7 किमीटर लंबा कासला बुग्याल ट्रैक भी है। बलावट मोंडा होते हुए 21 किमीटर की दूरी पर चांगशील बुग्याल भी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है। साल 2018 में सरकार ने इसे ‘ट्रैक ऑफ द ईयर’ घोषित किया था। बुग्याल से सटे इलाकों जैसे मौंडा, चिवां, दुचाणू, डगोली, झोटाड़ी, गोकुल और बलावट में ग्रामीणों ने अपने घरों को होम स्टे के लिए तैयार कर रखा है।
जाहिर अगर इस खूबसूरत इलाके का सैलानी रुख करते हैं तो सीधे तौर पर यहां के लोगों को फायदा मिलेगा। सरकार का प्लान भी यही है। लेकिन जरूरत है तो ऐसे जगहों को चिन्हित करने की। उम्मीद है सरकार की नजर सदियों पुराने उत्तरकाशी के इस इलाके की ओर जाएगी और एक बार फिर ये इलाका दुनिया के पटल पर अपनी अलग छाप छोड़ेगा।
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