उत्तराखंड में बोरारौ घाटी के नाम से मशहूर, वर्तमान में सोमेश्वर एक ऐसी घाटी है जो कृषि के क्षेत्र में आज भी मशहूर है।
कोरोना लॉकडाउन में भले ही प्रवासी राज्य में लौट आए हैं, लेकिन इससे पहले लाखों की संख्या में लोग पलायन कर बहार के राज्यों बसे हुए थे। यही वजह है कि उत्तराखंड के पर्वतीय अंचलों के लगभग ज्यादातर गांव वीरान हो गए थे। एक समय था जब यहां के ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय कृषि थी, जिससे लोग अपने वर्ष भर रासन की पूर्ति इन्हीं खेतों से ही किया करते थे। लेकिन आज भी पहाड़ के कई गांव ऐसे हैं, जहां आज भी परंपरागत खेती होती है।
बोरारो घाटी उन्हीं घाटियों में से एक जहां आज भी परंपरागत खेती की जाती है। आज भी यहां दर्जनों गांवों के लोग अपनी परंपरागत खेती को कर रहे हैं। कोसी नदी से लगी इस घाटी की एक परम्परा रही है। यहां के लोगों ने अपनी परम्परा को जिंदा रखा है। साथ ही अभी भी यहां की संस्कृति की झलक दिखाई देती है।
इस समय धान रोपाई का समय है। इन दिनों जहां लॉकडाउन के समय में लोगों का काम धंधा कम है। वहीं लॉकडाउन में मिली छूट के बाद इन बिहंगम सेरों में रोपाई शुरू हो गई है। महिलाएं हों पुरुष सुबह से ही अपने खेतों में चले जाते हैं और एक दूसरे खेतों में बारी वार मिलकर धान की रोपाई को करते हैं।
जहां एक तरफ लोग आजकल एक दूसरे कम मेल जोल रखते हैं, वहीं यहां के लोगों का ये मिलंसार व्यवहार सभी के लिए मिसाल है। बोरारो घाटी में जहां धान, गेहूं, दालों का उत्पादन होता है। वहीं ये आलू के लिए भी बहुत मशहूर है। यहां के आलू की मांग आज मैदानी इलाकों में सबसे ज्यादा है।
(अल्मोड़ा से हरीश भंडारी की रिपोर्ट)
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