सीतापुर से BJP के विधायक राकेश राठौर ने सत्ता का साथ छोड़कर सुर्खियां जरूर बटोर ली लेकिन ये भी सच है कि इस बार उन्हें पार्टी का टिकट मिलने के चांस कम थे।
चांस इसलिए कम थे क्योंकि राकेश राठौर का व्यवहार किसी के साथ सही नहीं था, आये दिन पार्टी विरोधी और ब्राह्मण ठाकुर जाति को लेकर वो विवादित बयान देते थे। विधायक रहते हुए भी उन्होंने कभी कोई जनसेवा नहीं की जिससे पार्टी की छवि बढ़िया हो।
चुनाव से पहले सत्ता का साथ छोड़ने का यह स्टैंड इसी डर से जोड़कर देखा जा रहा है। समाजवादी पार्टी में उनका कद कैसा होगा, इसका अंदाजा अभी लगाना मुश्किल है, लेकिन अखिलेश यादव को सत्ता पर तंज कसने के लिए एक पंचलाइन जरूर मिल गई है।
BJP में विधायक बनते ही बिगड़ने लगे थे बोल
विधायक राकेश राठौर ने कोरोना काल के दौरान पीएम मोदी के ताली थाली और बयान पर तंज कसा। उन्होंने BJP सरकार के निचली जातियों का ध्यान नहीं देने की बात कही थी। सरकार की ब्यूरोक्रेसी द्वारा विधायक की फरियाद न सुनने पर सरकार को कोसना शुरू कर दिया था। उन्होंने कहा था कि इस सरकार में विधायकों की कोई सुनने वाला नहीं है। ज्यादा कुछ बोल दिया तो देशद्रोह भी लग सकता है।
राकेश राठौर व्यापारी थे। 2007 के विधानसभा चुनाव में BSP के टिकट पर सदर सीट से चुनाव लड़े थे, लेकिन राजनैतिक करियर में अच्छी पैठ न होने के चलते चुनाव हार गए। कुछ सालों तक राजनीतिक गलियारों में पैठ बनाई। इसके बाद वह गतवर्ष हुए विधानसभा चुनाव में BJP के टिकट पर सीतापुर की सदर सीट से चुनाव लड़े। इसमें उनको जीत हासिल हुई। राकेश राठौर शुरूआती दिनों में ही तालमेल ठीक न होने के कारण सरकार को कोसने लगे।
बीजेपी जिलाध्यक्ष अचिन मेहरोत्रा का कहना है कि बीजेपी सरकार आपको साथ लेकर चलती है और ऐसा कहीं भी देखने को नही मिला है कि किसी भी विधायक के कामकाज से मना किया गया हो लेकिन वह पार्टी छोड़ कर अगर गए हैं तो यह उनका व्यक्तिगत निर्णय होगा। पार्टी ने विधायक को कहीं भी अनदेखा नही किया है।
वहीं, सपा जिलाध्यक्ष छत्रपाल यादव का कहना है कि बीजेपी सरकार से उनके विधायक ही खुश नहीं हैं इसलिए तो बीजेपी छोड़कर सपा का दामन थाम रहे हैं। उन्होंने कहा कि राकेश राठौर को लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का जो भी निर्णय होगा वह हमें स्वीकार होगा।
लेकिन राजनीतिक समीकरण में कहीं राकेश राठौर समाजवादी पार्टी के लिए पनौती न साबित हो जाए क्योंकि इनका पिछला रिकॉर्ड बताता है कि यह ब्राह्मण विरोधी हैं और इस क्षेत्र में ब्राह्मण इनसे नाखुश रहते हैं । अगर इन्हें समाजवादी पार्टी टिकट देती है तो ब्रह्मणों का वोट उनके हाथ से जाएगा ही नहीं बल्कि साथ में नाराजगी भी झेलनी पड़ेगी। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो समाजवादी पार्टी ने भले ही राकेश राठौर को पार्टी में जगह दे दी हो मगर राठौर के आचरण और इतिहास को देखते हुए उनका सपा से भी पत्ता कटना लगभग तय है।
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