भारत-तिब्बत सीमा पर हिमालय में बद्रीनाथ से तीन किमी आगे समुद्र तल से 18,000 फीट की ऊंचाई पर बसा है देश का आखिरी गांव है माणा।
ये गांव सामरिक तौर पर देश के लिए जितना महत्वपूर्ण है। उतना ही सांस्कृतिक विरासत के तौर पर भी महत्त्वपूर्ण है। गांव अपनी अनूठी परंपराओं के लिए भी बहुत मशहूर है। भारत की उत्तरी सीमा पर बरा ये गांव आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं। जिनमें व्यास गुफा, गणेश गुफा, सरस्वती मंदिर, भीम पुल, वसुधारा वगैरह प्रमुख है।
कैसा है यहां पर जीवन?
ऊंचाई पर बसे होने की वजह से गांव में कड़ाके की ठंड पड़ती है। साल के 12 महीने में से छह महीने ये गांव बर्फ की चादर ओढे रहता है। बर्फ से ढ़की होने की वजह से यहां के पहाड़ी चोटियां बिल्कुल खड़ी और खुश्क हैं। छह महीने कड़ाके की ठंड पड़ने पर गांव के लोग नीचे स्थित चमोली जिले के गांवों में अपना बसेरा करते हैं। इस गांव में मौजूद एकमात्र इंटर कॉलेज छह महीने माणा से और छह महीने चमोली में चलाया जाता है। छह महीने गर्मी में भी यहां इतनी ठंड पड़ती है देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले मौसम काफी ठंड रहता है।
खेती के लिहाज से कैसा है गांव?
पूरे देश में अप्रैल-मई में जब गर्मी पड़ती है तो इस गांव में बर्फ पिघलती है, तब यहां की हरियाली देखने लायक होती है। यहां की मिट्टी आलू की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। जौ और थापर दूसरी प्रमुख फसलों में हैं। खेत जोतने के लिए यहां के लोग पशु-पालन भी करते हैं। पहाड़ी क्षेत्र में मिलने वाली अचूक जड़ी-बूटियों के लिए भी माणा गांव बहुत प्रसिद्ध है। यहां मिलने वाली जड़ी-बूटी में ‘बालछड़ी’ है, जो बालों में रूसी खत्म करने और उन्हें स्वस्थ रखने के काम आती है।
कितनी है गांव की आबादी?
माणा गांव में चार सौ घर हैं और आबादी चार सौ के करीब है। ज्यादातर घर दो मंजिला है। ज्यादातर बर्फबारी की वजह यहां घर ज्यादातर लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं। इन घरों की खूबी ये है कि इस तरह के मकान भूकंप के झटकों को आसानी से झेल लेते हैं।
सुरक्षा बलों का है बेस कैंप
माणा देश का आखिरी गांव है। इसके बाद देश की सीमा खत्म हो जाती है और तिब्बत की सीमा शुरू हो जाती है। गांव के सीमा पर बसे होने की वजह से भारत-तिब्बत सीमा सुरक्षा बल का बेस भी है। कोऑपरेटिव सोसायटी से उन्हें हर महीने राशन मिलता है। सभी के घरों में बिजली है और सभी को गैस कनेक्शन भी दिए गए हैं।
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