फोटो: सोशल मीडिया
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, क्योंकि यहां कण-कण में शिव निवास करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि पहाड़ों से घिरी ये धरती शिव और उनके भक्तों की भूमि है। यहीं पर एक जगह है दशोली का बैरास कुंड। कहते हैं ये वही जगह है, जहां रावण ने भगवान शिव की तपस्या की थी। नंदप्रयाग में आज भी वो कुंड मौजूद है, जहां पौराणिक काल के सबूत मिलते हैं। अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगम पर बसा नंदप्रयाग पांच धार्मिक प्रयागों में से दूसरा है। पहला प्रयाग है विष्णुप्रयाग, फिर नंदप्रयाग, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग और आखिर में आता है कर्णप्रयाग। हरे-भरे पहाड़ और नदियों से घिरे नंदप्रयाग में आध्यात्मिक सुकून मिलता है। ये शहर बदरीनाथ धाम के पुराने तीर्थमार्ग पर है। यहीं से 10 किलोमीटर दूर स्थित है बैरास कुंड।
कहते हैं इस जगह रावण ने भगवान शिव को खुश करने के लिए तपस्या की थी। अपनी ताकत दिखाने के लिए रावण ने कैलाश पर्वत को भी उठा लिया था। इतना ही नहीं यहां रावण ने अपने 9 सिरों की बलि दी थी। तब से इस जगह को दशोली कहा जाने लगा। यहां बैरास कुंड के पास महादेव का मंदिर भी है। जिसका जिक्र केदाखंड और रावण संहिता में भी मिलता है। पौराणिक काल में इसे दशमौलि कहा जाता था। बैरास कुंड महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना करने से हर मनोकामना पूरी होती है। शिवरात्रि और श्रावण मास के अवसर पर यहां दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। स्कंद पुराण के केदारखंड में दसमोलेश्वर के नाम से बैरास कुंड क्षेत्र का उल्लेख किया गया है। बैरास कुंड में जिस जगह पर रावण ने शिव की तपस्या की वह कुंड, यज्ञशाला और शिव मंदिर आज भी यहां विद्यमान है।
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