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उत्तराखंड स्पेशल: महाभारत काल से लेकर कत्यूर-चंद शासकों की धरोहरों से भरा है चंपावत, जानें क्या है यहां खास?

उत्तराखंड के हर जिले की अपनी खासियत और एक अलग पहचान है। चंपावत जिले उन्हीं में से एक है।

महाभारतकालीन धार्मिक स्थलों और कत्यूरी-चंद शासकों के बनाए मंदिर, धर्मशाला, सराय, नौले और बिरखम जैसे अनगिनत सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धार्मिक धरोहरो की पूंजी को समेटे हुए है। मंदिरों की नगरी कहे जाने वाले द्वाराहाट के समान चंपावत, कुमाऊं का ऐसा क्षेत्र है जिसमें बहुत ही कम दूरी पर 11वीं से लेकर 14वीं सदी के मंदिर विद्यमान हैं। तारकेश्वर, क्रांतेश्वर, कपलेश्वर, सिट्यूड़ा-जूप-मादली के शिव मंदिर, चैकुनी शिव मंदिर, बालेश्वर, मानेश्वर, डिप्टेश्वर, हरेश्वर, मल्लाड़ेश्वर, मोनेश्वर, सपतेश्वर वगैरह ऐसे ही मंदिर हैं।

मंदिर के अलावा चंपावत में दूसरी बहुत सी धरोंहर हैं। सुदूरवर्ती गांवों में भी कई ऐसी सांस्कृतिक धरोहरें अभी भी मौजूद हैं जो इसे खास बनाती हैं। इन्हीं में एक है पाटी ब्लॉक के दूरस्थ मनटांडे गांव में स्थिति कत्यूरी-चंद शासकों द्वारा निर्मित 14वीं शताब्दी का अभिलेख युक्त ऐतिहासिक नौला और पंचायतन शैली मैं निर्मित प्राचीन शिव मंदिर। हालांकि इन दिनों ये प्रशासन की बेरुखी का शिकार है। देखरेख के अभाव में ये बदहाल होता जा रहा है। जरूरत है तो इसे संवारने संजोने की।

मनटांडे शिव मंदिर की सबसे खास बात ये है कि यह मंदिर उत्तर भारत की नागर शैली के अंतर्गत पंचायतन शैली में बना है। जिसमे एक मुख्य मंदिर के अलावा चार और छोटे देवालय उसके परित: बनाए जाते थे। इसी तरह का एक मंदिर चंपावत मुख्यालय के चैकुनी गांव में भी निर्मित है। मनटांडे के पूर्वोत्तराभिमुख पंचायतन शैली में निर्मित मंदिर के दो छोटे देवकुलिकाए वर्तमान समय में ध्वस्त हो चुकी हैं। मुख्य मंदिर में गर्भगृह और अंतराल का प्रावधान किया गया है। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के अतिरिक्त गणेश की एक और लक्ष्मीनारायण की दो प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठित हैं।

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