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उत्तराखंड स्पेशल: हरिद्वार कुंभ से जुड़ा 1915 का इतिहास, ब्रिटिश हक्मरानों की चूल्हे हिल गई थीं

धर्मनगरी हरिद्वार में इस साल होने वाले कुंभ की तैयारी जोरों पर चल रही है।

कुंभ को भव्य और एतिहासिक बनाने के लिए इस बार काफी कुछ नया हो रहा है। लेकिन क्या आपको हरिद्वार कुंभ से जुड़ा 106 साल पुराना इतिहास पता। जिसकी चर्चा हमेशा होती है। साल 1915 के कुंभ मेले में हरिद्वार की इस धरती पर दो ऐसे पन्ने लिखे गए, जो हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गए। इतिहास के इन पन्नों का नाता भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय के नाम से जुड़ा हुआ है।ये बात ब्रिटिश राज की है। तब हरिद्वार में ब्रिटिश सरकार द्वारा गंगा पर बांध का निर्माण किया जा रहा था। इसके खिलाफ 1014 से पंडा समाज येह कहते हुए आंदोलन कर रहा था कि बंधे जल में अस्थि प्रवाह और दूसरे कर्मकांड शास्त्रीय नजरिये से वर्जित हैं। पुरोहितों के आंदोलन का नेतृत्व महामना मदन मोहन मालवीय कर रहे थे। 1915 में जब कुंभ लगा तो महामना ने कुंभ में आए राजा महाराजाओं का सहयोग लेने के लिए हरिद्वार में डेरा जमा दिया था।

बताया जाता है कि तब छोटे-बड़े करीब 25 नरेश उस कुंभ में गंगा स्नान के लिए आए थे। महामना और पुरोहितों ने तीर्थत्व की रक्षा के लिए राजाओं को बांध विरोधी आंदोलन में भाग लेने के लिए राजी कर लिया। कुंभ के बाद बांध विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ा और कई रियासतों ने बांध का काम रोकने के लिए अपनी सेनाएं हरिद्वार भेज दी। ये आंदोलन सालों तक चला। बाद में ब्रिटिश सरकार और पुरोहितों के बीच ऐतिहासिक समझौता हुआ जो आज भी कायम है। अविच्छिन्न धारा छोड़ी गई और बांध अन्यत्र बना। कुंभ पर छेड़े गए आंदोलन की यह बड़ी जीत थी कि अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा। 1915 के कुंभ में महामना मालवीय ने मेला शिविर में अखिल भारतीय हिंदू महासभा की स्थापना की।

वीर सावरकर, हेडगेवार और भाई परमानंद जैसी हस्तियां उस बैठक में महामना के बुलावे पर हरिद्वार पहुंची थी। दरअसल, हिंदू सभा की स्थापना 1908 में पंजाब में हुई थी। हरिद्वार कुंभ में उसे राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू महासभा का स्वरूप प्रदान किया।

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