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अलविदा 2018: लड़ते रहे अधिकारी, सीबीआई की साख पर लग गया बट्टा

साल 2018 में सीबीआई विवाद देश की सुर्खियां बनीं। विभाग के अधिकारी दो-दो हाथ करते रहे और जनता के सामने सीबीआई की साख पर बट्टा लग गया।

सीबीआई के 77 साल के इतिहास में साल 2018 में पहली बार ऐसा देखने को मिला, जब दो शीर्ष अधिकारियों के बीच कड़वाहट और उनके अड़ियल रवैये की वजह से आपस में छिड़ी जंग से विभआग की प्रतिष्ठा पर आंच आई और केंद्र सरकार के हस्तक्षेप बवाल खड़ा हो गया।

सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कुछ राजनीतिक रूप से संवदेनशील मामलों की जांच में संलग्न रहे। इनमें पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े मामले भी शामिल थे।

बैंकों की धोखाधड़ी से जुड़े उजागर हुए एक के बाद एक मामले की जांच में सीबीआई पूरे साल व्यस्त रही। इसकी शुरुआत 31 जनवरी से हुई जब मुंबई के ब्रैडी हाउस स्थित पंजाब नेशनल बैंक की शाखा में कथित तौर 2011-17 के दौरान लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग एंड फॉरेन लेटर्स ऑफ क्रेडिट जारी करके बैंक को 13,500 करोड़ रुपये की चपत लगाने के मामले में हीरा कारोबारी नीरव मोदी और उनके मामा मेहुल चोकसी के खिलाफ जांच शुरू हुई।

मामले में सीबीआई जांच शुरू होने से पहले ही दोनों कारोबारी देश छोड़कर भाग चुके थे। सीबीआई और ईडी ने उनके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी करवाया। शुरू में चोकसी के एंटिगुआ में होने का पता चला। सीबीआई उनके प्रत्यर्पण की कोशिश में जुटी है।

इन सबके बीच चार दिसंबर में सीबीआई को कामयाबी मिली जब 3,600 करोड़ रुपये के अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलीकॉप्टर सौदे में आरोपी बिचौलिया ब्रिटिश कारोबारी क्रिश्चियन मिशेल का केंद्र सरकार की मदद से संयुक्त अरब अमीरात से प्रत्यर्पण हुआ और उन्हें भारत लाया गया।

सीबीआई को एक और कामयाबी तब मिली जब ब्रिटेन की एक अदालत ने 9,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की बैंक धोखाधड़ी के मामले में उद्योगपति विजय माल्या के प्रत्यर्पण का आदेश दिया। माल्या मार्च 2016 में देश छोड़कर भाग गए थे।

इन दो सफलताओं के बावजूद सीबीआई अपने निदेशक आलोक वर्मा और पदानुक्रम में दूसरे स्थान पर राकेश अस्थाना के बीच कड़वाहट से छिड़ी जंग से एजेंसी की प्रतिष्ठा पर लगे धब्बे को धो नहीं पाई।

दोनों अधिकारियों ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, जिसके बाद सरकार को दोनों अधिकारियों को मजबूर होकर अवकाश पर भेजना पड़ा। ऐसी घटना सीबीआई के 1941 में अस्तित्व में आने के बाद पहली बार हुई है।सीबीआई के संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को एजेंसी का अंतरिम निदेशक बनाया गया।

पहले सीबीआई ने गोश्त निर्यातक मोइन कुरैशी के खिलाफ एक मामले को रफा-दफा करने के लिए तीन करोड़ रुपये की रिश्वत लेने के कथित आरोप में अस्थाना के खिलाफ मामला दर्ज किया। इसके बाद अस्थाना ने एक दर्जन से अधिक मामलों में अपने बॉस के खिलाफ रिश्वत लेने के आरोप लगाए।

सीबीआई के भीतर की यह लड़ाई राजनीतिक मसला बन गई और विपक्षी दल संस्थान को दूषित करने का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अंगुली उठाने लगे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सीबीआई को अपने ही भीतर की जंग से पतनोन्मुख संस्थान बताते हुए प्रधानमंत्री पर निशाना साधा।

सीबीआई इस समय विश्वसनीयता के सबसे बड़े संकट के दौर से गुजर रही है। अंतरिम निदेशक नीतिगत फैसले लेने के लिए अधिकृत नहीं है जिससे अधिकांश मामले प्रभावित हुए हैं। सीबीआई के एक पूर्व निदेशक ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर आईएएनएस को बताया कि इस बखेड़ा से एजेंसी के काम-काज पर गहरा असर पड़ा है।

उन्होंने कहा, “सीबीआई के दो शीर्ष अधिकारियों के बीच के झगड़े से वास्तव में एजेंसी प्रभावित हुई है। लेकिन यह क्षणिक है। इससे एजेंसी की कार्यप्रणाली पर ज्यादा लंबा असर नहीं होगा क्योंकि यह काफी पेशेवर संगठन है। जब तक नए निदेशक पदभार ग्रहण नहीं करेंगे तब तक ऐसे ही काम चलेगा। एजेंसी दो धड़ों में बंट गया है एक धड़ा आलोक वर्मा के समर्थन में है तो दूसरा राकेश अस्थाना के साथ। फिलहाल पूरा मामला अदालत में है और फैसला आना बाकी है।

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