मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआत में ही मुसलमानों को बहुत बड़ा तोहफा दिया है। सरकार अब मदरसों के शिक्षकों को मॉर्डन साइंस और शिक्षा पद्धति के वैज्ञानिक तौर तरीकों की तकनीकी ट्रेनिंग देगी।
ताकि वो मदरसे में पढ़ रहे छात्रों को तकनीकी तौर पर भी तैयार किया जा सके। उनको साहित्य के साथ विज्ञान, कम्प्यूटर, इंटरनेट, ई-लर्निंग और स्मार्ट एजुकेशन सिस्टम से जोड़ा जा सके। इसके लिए सरकार बजट में अलग से प्रावधान भी करेगी ताकि योजना जल्दी से अमल में आ जाए। मोदी सरकार की नई शिक्षा स्कीम का मकसद मदरसों में पारम्परिक अरबी और उर्दू में धार्मिक शिक्षा के साथ मॉर्डन एजुकेशन भी पूरे वैज्ञानिक तरीके से देकर मदरसे से निकले छात्रों को भी मुख्य धारा में शामिल करना है।
सरकार के इसके लिए 5 साल का प्लान तैयार किया है। कार्यक्रम के अनुसार अगले पांच सालों में प्री-मैट्रिक, पोस्ट मैट्रिक और मेरिट-कम-मीन्स योजनाओं के जरिए देश के पांच करोड़ अल्पसंख्यक छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाएगी। इनमें 50 फीसदी से ज्यादा लड़कियों को शामिल किया जाएगा। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की लड़कियों के लिए बेगम हजरत महल बालिका स्कालरशिप भी शामिल है। यह स्कालरशिप दस लाख से ज्यादा होंगी। यह काम अगले महीने से शुरू कर दिया जाएगा।
इस योजना के ऐलान के साथ ही इसका विरोध भी शुरू हो गया है। वाराणसी के बाबाओं ने प्रधानमंत्री और अल्पसंख्यक मंत्रालय को चिट्ठी भेजी है। जिसमें उन्होंने कहा कि इस स्कीम का फायदा सिर्फ मुस्लिम छात्रों को ही क्यों मिले, जबकि सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक देश के करीब आठ राज्यों में हिंदू की आबादी इतनी कम है कि उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा और सुविधाएं मिले।
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