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धारा 370: मोदी सरकार ने ऐसे फतह किया ‘मिशन कश्मीर’, शाह-डोभाल ने निभाई अहम भूमिका

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म होते ही मोदी सरकार अपने मिशन में कामयाब हो गई है। कई महीनों की मेनत और आला अधिकारियों के दम पर मोदी सरकार इस मिशन में कामयाब हो पाई है।

गृहमंत्री अमित शाह, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रमण्यम ने मिशन कश्मीर में अहम भूमिका निभाई है। इनकी महीनों की कड़ी मेहनत और सही वक्त पर सही फैसले लेने का नतीजा है कि आज जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाया जा सका। खबरों के मुताबिक, जून के तीसरे हफ्ते में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हाटने के मिशन की शुरूआत की गई थी, जब 1987 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएएस अधिकारी बीवीआर सुब्रमण्यम को जम्मू और कश्मीर का नया मुख्य सचिव नियुक्त किया गया था।

मिशन कश्मीर का पूरा काम केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को दिया गया था। अमित शाह कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद के साथ मिलकर अपनी कोर टीम के साथ कानून से जुड़े पहलुओं की समीक्षा कर रहे थे। अमित शाह ने बजट सत्र की शुरुआत से पहले ही आरएसएसय प्रमुख मोहन भागवत और उनके सहयोगी (महासचिव) भैयाजी जोशी को अनुच्छेद-370 को हटाने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के केंद्र सरकार के विचार से अवगत करा दिया था।

कश्मीर मिशन में राज्या से धारा 370 हटाने के बाद कानून-व्यवस्था को बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती थी। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद कानून व्यवस्था को कैसे नियंत्रण में किया जाएगा इसे लेकर पीएम मोदी की सलाह पर अमित शाह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से कई दौर की वर्ता की थी। इस दौरान अजित डभाल ने गृहमंत्री के सामने कानून व्यवस्था को लेकर खाका पेश किया था।

बताया जा रहा है कि अमित शाह ने जब कश्मीर के हालात की खुद समीक्षा कर ली, उसके बाद एनएसए अजित डोभाल को सुरक्षा की दृष्टि से हालात की समीक्षा करने के लिए श्रीनगर भेजा। डोभाल ने श्रीनगर में तीन दिनों तक डेरा डाला। इसके बाद 26 जुलाई को अमरनाथ यात्रा रोकने का फैसला किया गया। घाटी से सैलानियों को निकालने की सलाह भी अजित डोभाल ने ही दी थी।

खबरों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव सुब्रमण्यम जो प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्रालय के साथ संपर्क में थे, उन्होंने ग्राउंड जीरो पर कई सुरक्षा कदम उठाने का खाका तैयार किया। इसमें पुलिस, अर्धसैनिक बलों और प्रशासन के प्रमुख अधिकारियों द्वारा सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल करने, संवेदनशील शहरी और ग्रामीण इलाकों में क्यूआरटी की तैनाती करने और सेना द्वारा नियंत्रण रेखा पर चौकसी बढ़ाने जैसे कदम शामिल थे। सेना, सुरक्षा एजेंसियों और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के प्रमुख केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य के मुख्य सचिव के साथ 24 घंटे संपर्क में थे।

4 अगस्त की रात को जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव ने राज्य के डीजीपी को कई अहम कदम उठाने के निर्देश दिए थे, जिनमें घाटी के प्रमुख नेताओं को नजरबंद करना, मोबाइल और लैंडलाइन सेवाएं बंद करना, धारा 144 लागू करने जैसे कदम शामिल थे।

वहीं दिल्ली में अमित शाह अपनी दूसरी प्रमुख टीम को काम पर लगाया, जिसमें उत्तराखंड से राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी और भूपेंद्र यादव शामिल थे। इस दल को उच्च सदन के सदस्यों का समर्थन जुटाने का काम सौंपा गया था, जहां बीजेपी को बहुमत नहीं है। इस टीम ने टीडीपी के राज्यसभा सदस्यों को तोड़ा और समाजवादी पार्टी के सांसद नीरज शेखर, सुरेंद्र नागर, संजय सेठ और कांग्रेस सांसद सजय सिंह को राज्यसभा से इस्तीफा दिलवाने का प्रबंध किया। इसके बाद बीजेपी को उच्च सदन में काफी बल मिला। वहीं, 12वें घंटे में टीम बीएसपी के नेता सतीश मिश्रा का समर्थन हासिल करने में कामयाबी हासिल की।

2 अगस्त को अमित शाह को भरोसा हो गया था कि उनकी पार्टी को राज्यसभा में पर्याप्त समर्थन हासिल हो गया है। इसके बाद उन्होंने सोमवार को राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर से जुड़े ऐतिहासिक बिल को पेश किया। साथ ही बीजेपी सांसदों को व्हिप जारी किया गया था ताकि वे संसद में मौजूद रहें, और विधेयक को पारित किया जा सके।

राज्यसभा में हंगामे के बीच सोमवार को अमित शाह ने जब विधेयक पेश किया, तो बीजेपी के एक सांसद ने कहा कि अमित शाह का मिशन कभी नाकाम नहीं होता, क्योंकि वो नए सरदार (वल्लभ भाई पटेल) हैं।

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