रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लाक की तल्ला नागपुर पट्टी के क्वीली, कुरझण और जौंदला गांव में होली का उत्साह नहीं है।
होली में फिलहाल दो दिनों का वक्त है, लेकिन लोग अभी से रंगों के इस त्योहार में सराबोर हो गए हैं। होली को खास बनाने के लिए रंग खरीद रहे, मिठाइयां बनवा रहे। ताकि होली के दिन जमकर मजा किया जाए, लेकिन उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के तीन गांव ऐसे हैं, जहां रंगों के इस त्योहार की रौनक नहीं दिखाई देती है। अगस्त्यमुनि ब्लाक की तल्ला नागपुर पट्टी के क्वीली, कुरझण और जौंदला गांव में होली का उत्साह नहीं है। यहां पिछले नौ दशक से भी ज्यादा वक्त से गांवों में होली नहीं मनाई गई है। जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी. दूर बसे इन तीनों गांवों की बसागत 20वीं सदी के मध्य की मानी जाती है। बताया जाता है कि जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने यजमान और काश्तकारों के साथ करीब 370 साल पहले यहां आकर बस गए थे।
ये लोग, तब अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति और पूजन सामग्री को भी साथ लेकर आए थे, जिसे गांव में ही स्थापित कर दिया गया था। आराध्य को वैष्णो देवी की बहन माना जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी कुलदेवी को होली का हुड़दंग पसंद नहीं है, इसलिए वे लोग सदियों से होली का त्योहार नहीं मनाते हैं। बताते हैं कि 150 साल पहले इन गांवों में होली खेली गई तो, तब यहां हैजा फैल गया था और बीमारी से कई लोगों की मौत हो गई थी। तब से आज तक गांव में होली नहीं खेली गई है। यहां कुछ लोगों ने होली पर एक-दूसरे को रंग लगाया था, तो नुकसान हुआ था। गांव में कई लोग बीमार हो गए थे।
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