उत्तराखंड: समुद्र मंथन के समय से खड़ा ये विशालकाय पेड़, धार्मिक के साथ औषधीय महत्व, गुण जानकर रह जाएंगे हैरान
अल्मोड़ा में जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर स्थित छानी गांव में एक ऐसा पेड़ है जो लोगों की आस्था का केंद्र हजारों सालों से बना हुआ है।
इसको लेकर बहुत सारी मान्यताएं। ऐसा माना जाता है कि छानी गांव में स्थित कल्पवृक्ष समुद्र मंथन के वक्त अस्तित्व में आया। लोग इस पेड़ की पूजा करते हैं और मन्नतें मांगते हैं। गांव के लोग ही नहीं बल्कि दूसरी जगहों से बड़ी तादाद में लोग यहां आते हैं और मन्नतें मांगते हैं। लोग इस कल्पवृक्ष को शिव के रूप में पूजते हैं। साधना के लिए भी ये जगह बहुत बेहतर बताई जाती है। साधना के लिए संत-महात्मा भी यहां आते रहते हैं। सबसे ज्यादा लोग पूजा के लिए शिवरात्रि में यहां पूजा के लिए आते हैं।
क्या है मान्याता?
ऐसी मान्यता है कि कल्पवृक्ष की किसी भी टहनी पर धागा बांध कर मन्नत मांगी जाए तो वो जरूर पूरी होती है। मन्नत है कि कामना पूरी होने के बाद कल्पवृक्ष की विधि विधान से पूजा अर्चना कर यह धागा खोलना होता है। बड़ी तादाद में लोग यहां इसी तरह से मन्नतें मांगते हैं और मुराद पूरी होने पर धागा खोल कर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं।
पेड़ का क्या है औषधीय महत्व?
इस पेड़ की वैसे तो बहुत सी खासियसत है, लेकिन एक बड़ी खासियत ये है कि इसकी पत्तियां कभी-कभार ही गिरती हैं। इसके अलावा इस पेड़ा का औषधीय महत्व भी है। इसके फल के बीजों से निकलने वाला तेल हृदय रोगियों के लिए काफी लाभकारी माना जाता है। कल्पवृक्ष का बायोलॉजिकल नाम ओलिया कुसपीडाटा है। ये ओलिसी कुल का पौधा है। इस पेड़ की एक स्पेसिज ओलिया यूरोपिया के फलों के बीजों से तेल निकाला जाता है। जो हृदय रोगियों के लिए लाभकारी होता है। इतना ही नहीं धार्मिक व औषधीय महत्व वाला यह पेड़ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी अडिग है।
अल्मोड़ा से हरीश भंडारी की रिपोर्ट