उत्तराखंड के पहाड़ों में कई प्रकार के औषधीय पौधे पाए जाते हैं, जिनका इस्तेमाल कई प्रकार के दवाइयों क बनाने में होता आया है।
अब यही पौधे काश्तकारों के लिए अच्छे रोजगार का जरिया बन रहे हैं। चंपावत में लॉकडाउन महामारी के बीच घर लौटे कई प्रवासी इन दिनों आंवला और तेजपात बेचकर अपना घर चला रहे हैं। आंवला 60-80 रुपये किलो और 180-200 रुपये किलो बेचा जा रहा है। आपको बता दें कि चंपावत में आंवला और तेजपात की पैदावार घाटी वाले इलाकों में काफी तादाद में होती है। चंपावत के मंच तामली क्षेत्र, सूखीढांग, बनलेख, लोहाघाट के पंचेश्वर, पुल्ला, बाराकोट के गल्लागांव, तड़ीगांव, नौमाना और पाटी के भिंगराड़ा क्षेत्र में बड़ी मात्रा में आंवला होता है। इन इलाकों में तेजपात की खेती भी होती है।
वैसे तो तेजपाल और आंवा ज्यादातर बड़े काश्तकार डिमांड के आधार पर किलो के हिसाब से बेचते थे। लेकिन इस बार बड़ी तादाद में लोगों के रोजगार छिनने की वजह से सब्जी और किराना की दुकान में भी तेजपात और आंवला बिक रहा है। ज्यादातर प्रवासियों ने इसे सीजनल रोजगार का जरिया बना लिया है। कई लोगों ने तो इस सीजन में आंवला, तेजपात के अलावा हरड़, बड़ी इलायची, नीम वगैरह के पौधे भी लगाए हैं।
जिस तरह से इस सीजन में बड़ी तादाद में लोगों ने इसे अपना व्यवसाय बनाया है। उसे देखते हुए कई काश्तकारों का मानना है कि अगर औषधीय पौधों के रोपण के लिए लोगों को प्रोत्साहन दिया जाए तो जिले में जड़ी बूटी उत्पादन बढ़ सकता है। इससे रोजगार के जरिये भी बढ़ेंगे।
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