लंबी लड़ाई के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य की स्थापना इस मकसद से हुई थी कि क्षेत्र का विकास होगा। जिससे स्थानीय लोगों का पलायन रुकेगा।
20 साल बाद भी प्रदेश के हाल वैसे ही हैं। कई क्षेत्रों में तो स्थितियां और उल्टी हो गई है। युवाओं का पलायन रुकने के बजाय सरकारी तंत्र और जनप्रतिनिधियों की लापरवाही की वजह से उद्योगों का ही पलायन हो रहा है। मौजूदा वक्त में उत्तराखंड के 1702 गांव निर्जन हो चुके हैं वहीं इस दौरान सैकड़ों उद्योग बंद भी हो गए हैं।
नैनीताल जिले की बात करें तो यहां 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी और केंदीय मंत्री एनडी तिवारी ने पहाड़ की तलहटी में एसएमटी फैक्ट्री का शुभारंभ किया। जिसका मकसद सथा पहाड़ से पलायन कर रहे युवाओं को रोजगार देना, लेकिन राज्य बनने के बाद जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की लापरवाही की वजह से ये फैक्ट्री आज बंद हो चुकी है। जिसकी वजह से यहां काम कर रहे लोगों को नौकरी की तलाश में दूसरी जगहों पर जाना पड़ा।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक फक्ट्री बंद हुई है। फेहरिस्त बहुत लंबी है। 1989 में हल्दूचौड़ के बेरीपड़ाव में खुली पोलिस्टर फिल्म बनाने वाली जलपैक इंडिया फैक्ट्री 22 अगस्त 2014 को बंद हो गई। जिसके दौ सौ से ज्यादा कर्मचारी बेरोजगार हो गए। वहीं भीमताल स्थित हिलट्रोन कम्पनी, कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा संचालित केबल फैक्ट्री समेत कई उद्योग जनप्रतिनिधियों की लापरवाही से अंतिम सांसें गिन रहे है।
इस दौर में सबसे ज्यादा जरूरी यही है कि सरकार प्रदेश में इंडस्ट्री लगाने पर फोकस करे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों रोजगार मिले, जिससे पलायन रुकेगा। कोरोना काल से सबक लेते हुए इस दिशा में और ज्यादा काम करने की जरूरत है।
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