4 साल के कार्यकाल में नहीं लगे एक भी बड़े आरोप, फिर भी चली गई त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी, ये है इनसाइड स्टोरी!

दो दिनों की सियासी उठापठक के बाद आखिरकार सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी चली गई।

इसके साथ ही रावत भी उन तमाम मुख्यमंत्रियों में शामिल हो गए जिन्होंने प्रदेश में अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। 4 साला कार्यकाल पूरा करने से करीब 9 दिन पहले उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इस्तीफा देने की वजह पूछने पर उन्होंने कहा कि इसका जवाब जानने के लिए आपको दिल्ली जाना होगा। कमाल की बात ये कि त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भ्रष्टाचार समेत दूसरे कोई भी बड़े आरोप नहीं थे। बावजूद इसके उनको अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी, क्योंकि पार्टी आलाकमान प्रदेश में नया मुख्यमंत्री चाहता है। आखिर वो वजह क्या है जिसकी वजह से रावत को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा।

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि गद्दी जाने की बड़ी वजह प्रदेश के 4 जिलों चमोली, रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा और बागेश्वर को मिलाकर नया गैरसैंण मंडल बनाना माना जा रहा है। हालांकि इकलौता फैसला नहीं है जिसकी वजह से उन्हें पार्टी के अंदर विरोध का सामना करना पड़ा और नौबत यहां तक आ गई। एक और बड़ी वजह एक सर्वे में उन्हें सबसे अलोकप्रिय CM बताया गया था।

3 बड़ी वजह जिसकी वजह से गई कुर्सी!

1. उत्तराखंड सांस्कृतिक और भाषाई तौर पर मुख्य रूप से गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों में बंटा है। दोनों ही मंडलों में हमेशा से अपना दबदबा कायम करने की होड़ रही है। यूपी से अलग होने से पहले भी इन दोनों मंडलों में प्रतिस्पर्धा रहती थी। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गढ़वाल के हिस्से गैरसैंण मंडल में कुमांऊ के दो जिलों अल्मोड़ा और बागेश्वर को शामिल किया तो पूरे कुमाऊं में सियासी तूफान आ गया। इसे कुमांऊ की अस्मिता और पहचान पर हमला माना गया।

2. त्रिवेंद्र ने जब उत्तराखंड देवस्थानम् बोर्ड बनाकर केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम को सरकार के अधीन कर दिया था तो इससे ब्राह्मण समाज में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। खुद बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी थी। हालांकि हाईकोर्ट में सरकार जीत गई थी, लेकिन स्वामी सुप्रीम कोर्ट चले गए और अभी मामले पर सुनवाई हो रही है। त्रिवेंद्र के इस फैसले से बीजेपी आलाकमान भी खुश नहीं था। हरिद्वार से लेकर बद्रीनाथ तक संत समाज भी त्रिवेंद्र के इस फैसले के खिलाफ था।

3. हाल ही में रावत सरकार ने गैरसैंण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया था। इस फैसले को उन्होंने पर्वतीय जनभावनाओं के अनुरूप बताया, पर जनता ने इसे नकार दिया। अपने फैसले को ठीक ठहराने के लिए उन्होंने गैरसैंण में काफी काम भी कराया। विधानसभा की बैठक भी बुलाई, लेकिन अफसरों के देहरादून में ही रहने की वजह से इसका लोगों को कोई फायदा नहीं हुआ।

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