लाल किले की प्राचीर पर तिरंगे को फहराना और यहां से देश को संबोधित करना हर नेता का सपना होता है। लेकिन यह ख्वाब हर किसी का पूरा नहीं होता।
लाल किले पर तिरंगा फहराने का सपना हकीकत में उन्हीं तेनाओं का तब्दील होता है, जो देश के प्रधानमंत्री बनते हैं। लेकिन आपको जानकर ये हैरानी होगी कि देश के दो ऐसे नेता जो प्रधानमंत्री तो बने, लेकिन लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा नहीं फहरा पाए।
लाल किले की प्राचरी पर देश के जो दो प्रधानमंत्री तिरंगा नहीं फहरा पाए उनके नाम हैं, गुलजारी लाल नंदा और चंद्रशेखर। गुलजारी लाल नंदा दो बार 13-13 दिन के लिए प्रधानमंत्री तो बने, लेकिन उन्हें लाल किले पर तिरंगा फहराने का मौका नहीं मिला। पहली बार वे प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद 27 मई से 9 जून 1964 तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाए गए। वहीं दूसरी वे लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद बार 11 जनवरी से 24 जनवरी तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाए गए। लेकिन इन दोनों कार्यकाल उतने ही समय तक सीमित रहे, जब तक कि कांग्रेस पार्टी ने अपने नए नेता का चयन नहीं किया।
चंद्रशेखर दूसरे ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्हें लाल किले की प्राचीर पर झंडा फहराने का मौका नहीं मिला। वे 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। ऐसे में उन्हें भी लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराने का मौका नहीं मिला।
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