लाल किला और लाल किले की प्राचीर सदियों के इतिहास को समेटे हुए है। जब आप इसके इतिहास की गहराई में जाने और समझने की कोशिश करेंगे तो कई दिन इसे समझने में लग जाएंगे कि इसकी देश के लिए क्या अहमीयत है। फिलहाल सवाल ये है कि आखिर क्या ऐसी वजह कि देश के प्रधानमंत्री 15 अगस्त को लाल किले पर ही तिरंगा फहराते हैं और यहीं से देश को संबोधित करते हैं।
लाल किले से 1857 की क्रांति का अध्याय जुड़ा हुआ है। 10 मई, 1857 को मेरठ में देश को आजाद कराने के लिए क्रांति शुरू हुई। फिर क्या था भारतीय स्वतंत्रता के शूरवीरों ने आंग्रेजी शासन के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। आंग्रेजों से पूरे देश में आर-पार की लड़ाई शुरू हो गई। मेरठ से उठी क्रांति की चिंगारी ने 11 मई को दिल्ली में प्रवेश किया। क्रांतिकारियों ने मुगल साम्राज्य के आखिरी बादशाह बहादुर शाह द्वितीय को देश का सम्राट घोषित कर दिया। और फिर बहादुर शाह ने दिल्ली पर कब्जा जमा लिया। लेकिन यह जीत काफी दिनों तक नहीं चली। आखिरकार 21 सितंबर, 1857 को एक बार फिर अंग्रेजों ने दिल्ली पर अपना अधिकार जमा लिया।
क्रांति के विफल होने के बाद अंग्रेजों ने बहादुर शाह समेत कई बड़े स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार कर लिया। ये वही लाल किला है जहां के दीवान-ए-खास में बहादुर शाह को गिरफ्तार करने के बाद 40 दिन तक मुकदमा चलाया गया था। और दोषी ठहराए जाने के बाद बहादुर शाह को देश से निकालने की अंग्रेजों ने सजा दी थी, जिसके तहत उन्हें रंगून भेज दिया गया। बहादुर शाह के बाद कई बड़े स्वतंत्रता सेनानियों पर भी इसी लाल किले में मुकदमा चलाया गया था।
मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक के लिए लाल किला कूटनीति के लिहाज से एक अहम इमारत थी। अंग्रेजों के लिए ये वो इमारत थी, जहां से वे प्रशासनिक कार्य को अंजाम दिया करते थे। और यहीं पर वे रणनीति भी तैयार किया करते थे। कहते हैं कि आधी रात को जब देश में आजादी की घोषणा की गई थी तो उसी रात को लोग हाथों में तिरंगा लिए लाल किले पर जमा हो गए थे और यहीं पर आजादी का पहला जश्न मनाया गया। देश की आजादी का लाल किया गवाह है। आजादी मिलने के बाद पहली बार देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराया था और देश को यहीं से संबोधित किया था। तब से अब तक देश का हर प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले पर ही तिरंगा फहराता है और देश को यहीं से संबोधित करता है।
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