उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल में धूमधाम से मना ‘बटर फेस्टिवल’, मक्खन-मठ्ठे की खेली गई होली, जानें त्योहार का इतिहास
उत्तराखंड के उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल धूमधाम से मनाया गया।
त्योहार के मौके पर महिलाएं और पुरुषों ने मक्खन और मठ्ठे की होली खेली। इस त्योहार को बटर फेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंडवासियों को बटर फेस्टिवल की बधाई दी है।
फाल्गुन महीने की होली के रंगों में तो सभी सराबोर होते हैं, लेकिन उपला टकनौर क्षेत्र में मक्खन और मट्ठा के साथ खेली जाने वाली होली अढूंडी उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। यह होली अपनी विशेष पहचान रखती है। आज दयारा पर्यटन उत्सव समिति रैथल की ओर से दूध, मक्खन व मट्ठे की होली खेली की गई। जिसके साथ ही बटर फेस्टिवल की शुरूआत हो गई।
जमकर खेली गई होली
बटर फेस्टिवल में स्थानीयों के साथ पर्यटकों ने खूब बढ़चकर हिस्सा लिया। मक्खन और मट्ठा की होली खेली। यहां राधा और कृष्ण के साथ होल्यारों ने मक्खन और मट्ठे की होली खेलते हुए बुग्याल का चक्कर लगाया और मक्खन से भरी मटकी फोड़ी। अढूंडी उत्सव जिसे बटर फेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है। बटर फेस्टिवल के दौरान स्थानीय महिला और पुरूषों ने ढोल दमाऊ की थाप पर रासौं सहित अन्य लोक नृत्य और लोकगीत की प्रस्तुतियों ने समां बांध दिया।
खेली गई मक्खन और मट्ठे की होली
उत्तरकाशी के जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर दूरी पर दयारा बुग्याल 28 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। दयारा पर्यटन उत्सव समिति रैथल के अध्यक्ष मनोज राणा ने बताया कि पहले इस अढूंडी उत्सव को गाय के गोबर से भी खेलते थे, लेकिन अब ग्रामीणों ने मक्खन और मट्ठे की होली खेलना शुरू किया है। इस उत्सव में ग्रामीण प्रकृति की पूजा करते हैं और प्रकृति देवता का धन्यवाद करते हैं।
बटर फेस्टिवल को कैसे मिली पहचा?
काफी पहले यहां गाय के गोबर से होली खेली जाती थी। बाद में अढूंडी उत्सव को पर्यटन से जोड़ने के बाद ग्रामीणों ने मक्खन और मट्ठे की होली खेलना शुरू कर दिया। इस वजह से अढूंड़ी उत्सव को बटर फेस्टिवल के रूप में पहचान मिली है। इस बटर फेस्टिवल में ग्रामीण प्रकृति के प्रति कृतज्ञता जताते हैं।
उत्तराकशी में कहां है दयारा बुग्याल?
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 42 किलोमीटर की सड़क दूरी और भटवाड़ी ब्लॉक के रैथल गांव से 9 किलोमीटर पैदल दूरी पर दयारा बुग्याल स्थित है। यह दयारा बुग्याल 28 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। कहते हैं कि सदियों से अढूंड़ी उत्सव मनाया जाता आ रहा है।