16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया कांड की सातंवीं बरसी है। सात साल पहले इसी दिन निर्भया के साथ दिल्ली में दरिंदगी हुई थी। बहादुर बेटी के दोषियों को कोर्ट ने मौत की सजा तो सुना दी है, लेकिन वो अभी तक मुकम्मल नहीं हुई है।
सातवीं बरसी पर दोषियों को फांसी के फंदे पर लटकाने की मांग तेज हो गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जल्द ही चार दोषियों को फांसी दी जा सकती है और इसकी तैयारी भी चल रही है। निर्भया आज भले ही इस दुनिया में नहीं है, लेकिन हम सभी के बीच वो आज भी जिंदा है। देहरादून स्थित निर्भया का संस्थान उसके नाम से (निर्भया फंड) बनाकर हर साल बेटियों को काबिल बना रहे है। इस फंड से हर साल 10 बेटियों को फ्री में शिक्षा दी जाती है। ये वही संस्थान है जहां से वो पैरामेडिकल कोर्स की पढ़ाई कर रही थी। उसके साथ हुई दरिंदगी से पूरा संस्थान प्रशासन भी गहरे सदमे में आ गया था। महीनों तक निर्भया के शिक्षकों से लेकर साथी छात्र-छात्राएं भी सदमे में रहे थे।
निर्भया के संस्थान ने बहादुर बिटिया की मौत के बाद उसके नाम से फंड बनाया। इसमें करीब 1.5 लाख रुपये जमा किए गए। इस फंड का मकसद है कि जो भी गरीब बेटी पढ़कर आगे बढ़ना चाहती हैं, उनकी पढ़ाई का खर्च इससे निकाला जाता है। यही नहीं इस फंड से अचानक किसी भी बीमारी का शिकार हुई बेटी का इलाज भी कराया जाता है।
पूरे देश की तरह ही निर्भया को पढ़ाने वाले टीचर की जुबां पर भी हमेशा उसका नाम होता है। पूरे मुल्क की तरह ही उसके शिक्षक भी चाहते हैं कि दोषियों को जल्द फांसी के फंदे पर लटकाया जाए। उनका मानना है कि इससे एक ओर जहां देशभर में एक संदेश जाएगा तो दूसरी ओर निर्भया की आत्मा को शांति भी मिलेगी। कॉलेज के सभी शिक्षक उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब निर्भया के दरिंदों को सूली पर लटकाया जाएगा।
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