चमोली हादसे के तीन बाद भी जिंदगी की तलाश जारी है। बताया जा रहा है कि अब तक 170 लोग लापता है। जिन्हें ढूंढने की कोशिश हो रही है।
वहीं टनल में फंसे करीब 35 लोगों को बचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है। हादसे में मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर 36 हो गया है। हादसे के बाद से ही इस पहलू की जांच की जा रही है कि आखिर इसकी प्रमुख वजह है। इस दौरान एक जानकारी ये भी निकल कर सामने आई है कि लापरवाही भी हादसे की वजह हो सकती है। चमोली में आई आपदा से सात साल पहले ही विशेषज्ञों ने यहां भूस्खलन की आशंका जता दी थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनी पर्यावरणीय अध्ययन समिति ने अपनी रिपोर्ट में ऋषिगंगा सहित सात नदियों को भू-स्खलन का हॉटस्पॉट करार दिया था।
बता दें कि इसी आधार पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भी सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में इन नदियों पर पावर प्रोजेक्ट को खतरा माना था। समिति ने पूरे इलाके के निर्मित और निर्माणाधीन बांधों से होने वाले पर्यावरणनीय नुकसान पर अपनी रिपोर्ट भी मंत्रालय को सौंपी थी। इस रिपोर्ट को ही आधार बनाकर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था। विशेषज्ञों ने बताया था कि असीगंगा, ऋषिगंगा, बिरही गंगा, बाल गंगा, भ्युदार गंगा और धौली गंगा भू-स्खलन के लिए हॉट स्पॉट है। यहां पावर प्रोजेक्ट होने पर बड़ा खतरा भी हो सकता है। एक्सपर्ट का मानना है कि ये अलर्ट के बावजूद इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। ये हादसे की बड़ी वजह हो सकती है।
भूकंप भी है खतरा
पर्यावरण विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में ये भी बताया था कि चूंकि उत्तराखंड सीस्मिक जोन-4 और जोन-5 में आता है। इसलिए यहां बड़े भूकंप की वजह से भी नदियों में भू-स्खलन का ज्यादा खतरा है। मंत्रालय ने इस आधार पर यह भी साफ किया था कि कड़ी पर्यावरणीय अध्ययन के बाद ही किसी भी हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट को पर्यावरणीय स्वीकृति दी जाएगी।

