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अल्मोड़ा नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के लिए क्या मुश्किल खड़ी कर सकता है?

तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बने दो दिन हो चुके हैं। शुक्रवार को उन्होंने कैबिनेट विस्तार भी कर दिया है।

अब उनके सामने चुनौती अगले एक साल में प्रदेश के सियासी माहौल को बीजेपी के हक में करने के साथ ही अगले चुनाव में मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी दावेदारी को और मजबूत करना है। लेकिन इस चुनौती को अपने हक में करने की राह में उनके सामने सबसे बड़ा रोड़ा अल्मोड़ा के लोग बन सकते हैं। दरअसल गैरसैंण मंडल बनाए जाने के बाद उसमें अल्मोड़ा जिले को शामिल करना यहां के लोगों को रास नहीं आ रहा है। जानकारों का कहना है कि अगर बीजेपी अपना फैसला नहीं बदलती है तो एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में उसे यहां से नुकसान उठाना पड़ सकता है। जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिल सकता है।

क्या है अल्मोड़ा का समीकरण?
अल्मोड़ा जिले में छह विधानसभा सीटें हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में रानीखेत और जागेश्वर विधानसभा सीट को छोड़कर बाकी की चार सीटें सल्ट, अल्मोड़ा, सोमेश्वर और द्वाराहाट में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। रानीखेत विधानसभा सीट भी बीजेपी प्रत्याशी अजय भट्ट बहुत ही कम वोटों के अंतर से हारे थे। ऐसे में अगर इस बार यहां के लोगों का विरोध यूं ही जारी रहा तो इन चारों सीट पर बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

वहीं कांग्रेस यहां के लोगों के विरोध को अपने पक्ष में भुनाना चाहती है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा है कि अगर अगले साल उनकी सरकार बनी तो वो गैरसैंण को जिला बनाएंगे। पूर्व सीएम की इस बात से साबित हो गया है कि कांग्रेस इस मुद्दे को विधानसभा चुनाव में उठाकर सियासी फायदा देने की कोशिश जरूर करेगी। ऐसे में तीरथ सिंह रावत ने यहां के लोगों के विरोध को खत्म करा कर उन्हें खुश नहीं किया तो अगले चनाव में बीजेपी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

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