कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में त्राहिमाम मचा रखा है। उत्तराखंड में भी कोरोना वायरस की वजह से हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार फंड जुटा रही है।

इसी कड़ी में सरकार ने विधायकों की वेतन कटौती कर दी। जिसको लेकर विवाद हो गया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि वेतन कटौती में एकरूपता नहीं है। कांग्रेस विधायकों के वेतन में ज्यादा कटौती हो रही, जबकि बीजेपी विधायकों के वेतन में कम कटौती की जा रही है। कुछ विधायकों का मूल वेतन काटा जा रहा है तो वहीं कुछ विधायक ऐसे भी हैं, जिनके मूल वेतन का सिर्फ 30 फीसदी हिस्सा काटा जा रहा है।

कांग्रेस विधायकों का आरोप है कि कोरोना फंड के नाम पर बीजेपी सरकार ने वेतन कटौती का फैसला लिया, लेकिन बीजेपी के अपने विधायकों ने कैबिनेट के फैसले के अनुरूप वेतन कटौती नहीं कराई। दरअसल कांग्रेस विधायक मनोज रावत ने एक आरटीआई के जरिए इसका खुलासा किया। जिसके मुताबिक इस वक्त प्रदेश में 4 तरह से 30 प्रतिशत वेतन की कटौती हो रही है। कुछ विधायक कैबिनेट के फैसले के अनुरूप वेतन, सचिवीय, विस भत्ता कटा रहे हैं। वहीं कुछ विधायकों ने मूल वेतन काटने को कहा है। जबकि कुछ विधायक वेतन और सचिवीय भत्ता कटा रहे हैं। कई विधायक ऐसे भी हैं जो मूल वेतन का 30 फीसदी कटा रहे हैं। विधायकों के वेतन कटौती एक समान नहीं है यही विवाद की जड़ है।

त्रिवेंद्र सिंह रावत अब इस विवाद को शांत करने के लिए अध्यादेश लाने की तैयारी कर रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संसदीय कार्यमंत्री मदन कौशिक ने बुधवार को अध्यादेश से वेतन कटौती विवाद का इलाज करने के संकेत दिए। राज्य सरकार के पास चार विकल्प हैं। राज्य सरकार विवाद निपटारे के लिए यूपी की तरह अध्यादेश ला सकती है। संसदीय कार्यमंत्री चीफ व्हिप होने के नाते अपील कर सकते हैं। राजनीतिक दल अपने स्तर पर फैसला ले सकते हैं, या फिर विधायक मंडल दल की बैठक में एक समान कटौती का फैसला हो सकता।

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