उत्तराखंड: विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर धाम में होली से पहले ‘चीर बंधन’, पहाड़ की इस परंपरा को जानते हैं आप?
उत्तराखंड में होली उत्सव जारी है। अल्मोड़ा के विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर धाम में होली के चीर बंधन के साथ ही होली महोत्सव का शुभारंभ किया गया।
जागेश्वर धाम में विधि विधान और रीति रिवाज के साथ होलियारों और पुजारियों ने चीर बंधन किया, जिसमें होली गायन का कार्यक्रम किया गया। चिर बंधन में ‘कैलै बांधी हो चीर’, ‘हो सौ सीसी भर दे गुलाल’, ‘होली रै रसिया आज बृज में’ जैसे होली गीतों को होल्यारों, पंडितों और पुजारियों ने गाया। इस मौके पर सदियों पुरानी परंपरा के मुताबिक, एकादशी पर्व के अवसर पर चीर बंधन कर होली का विधिवत आगाज किया गया।
चीर को जागेश्वर मंदिर के अलावा हर एक दुकान और घरों में ले जाकर घुमाया गया। इस चीर के डोले का विधिवत पूजन किया गया। फाल्गुन माह की एकादशी से शुरू वाली होली गायन का यह क्रम जागेश्वर धाम समेत समूचे क्षेत्र में शुरू हो गया है। जागेश्वर धाम में चीर बंधन की भी अलग विशिष्ट परंपरा है। होलिकाष्टमी के दिन ही कुमाऊं में कहीं-कहीं मंदिरों में चीर बंधन का प्रचलन है। लेकिन जागेश्वर धाम में एकादशी को मुहूर्त देखकर चीर बंधन किया जाता है। इसके लिए गांव के प्रत्येक घर से एक-एक नए कपड़े के रंग-बिरंगे टुकड़े ‘चीर के रूप में लंबे लठ्टे पर बांधे जाते हैं। इस मौके पर कैलै बांधी चीर हो रघुनंदन राजा, सिद्धि को दाता गणपति बांधी चीर हो, जैसे गीत गाए जाते हैं। इसमें गणपति के साथ सभी देवताओं के नाम लिए जाते हैं।
इस अवसर पर जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति के प्रबंधक भगवान भटृ, प्रधान पुजारी हेमन्त भटृ, कैलाश भट्ट सोनू, योगेश भट्ट ज्येष्ठ प्रमुख, गोपाल पंडा, मोहन भट्ट लाल बाबा, ग्राम प्रधान जागेश्वर राम प्रसाद, ग्राम प्रधान मंतोला नारद भट्ट, पूर्व ग्राम प्रधान हरीमोहन, नवीन भटृ, मुकेश भट्ट, नाथू भट्ट और गिरीश भटृ आदि सैंकड़ों ग्रामीण मौजूद थे।
(अल्मोड़ा से हरीश भंडारी की रिपोर्ट)