उत्तरकाशी में मची तबाही का दर्द ग्लेशियर लेडी ने सुनाया, पीएम को लिखी चिट्ठी, आपदा में सबकुछ हो चुका है बर्बाद
उत्तराखंड के उत्तरकाशी के मोरी तहसील में बादल फटने के बाद अभी भी जनजीवन पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौटा है।
उत्तरकाशी के मोरी तहसील में अपदा के चले ‘कटार’ के बाद मरघट सा सन्नाटा है। बादल फटने के बाद इलाके में 15 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। लोगों के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट गया था। इलाके में जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई करना इतना आसान नहीं है। दर्जनों घर तबाह हो चुके हैं। सड़कें बर्बाद हो गई हैं। राज्य सरकार और प्रशासन युद्ध अस्तर पर इलाके में निर्माण काम करवा रहा है।
ग्लेशियर लेडी शांति ठाकुर ने आराकोट में आपदा से मची तबाही पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि इलाके के प्रभावितों के लिए नए आशियानों का निर्माण करना बड़ी चुनौती है। उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी को ज्ञापन भेजा है। उन्होंने प्रभावित क्षेत्र के पुनर्निर्माण और पीड़ितों की समस्याओं के समाधान की मांग की है। शांति ठाकुर दो हफ्ते तक आपदा प्रभावित इलाकों का दौरा कर बड़कोट लौटी हैं। उन्होंने कहा कि आराकोट, बंगाण इलाके में आपदा के दो हफ्ते बीत जाने के बाद भी जनजीवन पटरी पर नहीं लौटा है।
शांति ठाकुर ने बेरोजगार हो चुके युवाओं के लिए आवाज उठाई है। उन्होंने मांग की है कि बाढ़ क्षेत्र में प्रभावित इलाकों के परिवारों के युवकों और युवतियों को सरकार नौकरी दे। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने 38 करोड़ रुपये की जो क्षति का आंकलन किया है वह नाकाफी है। इस क्षेत्र में 38 करोड़ से कही ज्यादा का नुकसान हुआ है। शांति ठाकुर की मांग है कि यहां के लिए अतिरिक्त बजट की व्यवस्था की जाए। उन्होंने कहा कि आपदा प्रभावित इलाके में सेब की फसल को सुरक्षित रखने के लिए यहां सेब से जुड़ी एक ऐसी फैक्टरी खोली जाय जिससे बेरोजगारों को रोजगार मिल सके और जैम, जैली, चटनी आदि भी तैयार की जा सके। उन्होंने कहा कि इलाके के ग्रामीण भूमिहीन और भवनहीन हो चुके हैं, इनमें कोटधार से चिवां तक लोगों को विस्थापित किया जाए।
मोरी तहसील में आई आपदा में सैकड़ों लोगों के सपने चकनाचूर हो गए हैं। आरकोट में तबाही के निशान देखकर जख्म ताजा हो जाते हैं। आरकोट में इस कदर तबाही मची है कि जीवन शैली ही खत्म हो चुकी है। लोगों के खाने-कमाने के संसाधन बर्बाद हो गए हैं। ग्रामीणों को समझ नहीं आ रहा कि इस चुनौती से आखिर कैसे निपटा जाए। जिस इलाके के सेब की फसल का पूरा देश इंतजार किया करता था। वो सेब की फसल आपदा की आंधी में मिट गई है। पीड़ितों के जीवन जीने के सभी सहारे मटियामेट चुके हैं।