Newsउत्तराखंड

उत्तराखंड के चंपावत में रक्षाबंधन पर लोगों ने एक दूसरे पर बरसाए पत्थर, जानिए कैसी है ये परंपरा

उत्तराखंड के चंपावत जिले के देवीधुरा में मां वाराही देवी के मंदिर परिसर में हर साल की तरह इस साल भी रक्षाबंधन के अवसर पर बग्वाल खेली गई।

इस दौरान चार खेमों में बंटे लोगों ने परंपरा के तहत एक दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाए। इस पत्थरबाजी में 120 से ज्यादा लोग घायल हो गए। बग्वाल खेल देखने के लिए आस-पास के गांवों और जिलों के हाजरों लोग यहां जमा हुए थे। बग्वाल खेल शुरू होने से पहले लोगों ने मां वाराही देवी की पूजा-अर्चना की। इसके बाद करीब दोपहर ढाई बजे बग्वाल खेल शुरुआत हुई और 2.46 मिनट तक चली। मंदिर के पुजारी ने शंख बजाकर बग्वाल खेल की शुरुआत की। परंपरा के तहत पहले चार खेमों में बंटे लोगों ने फलों और फूलों की बर्सात की और आखिरी दो मिनट में एक दूसरे के खेमों पर जमकर पत्थर बरसाए।

अब आप सोच रहे होंगे कि रक्षाबंधन के दिन जहां पूरे देश में बहनें भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधती हैं, वहीं देवीधुरा के लोगों ने एक दूसरे पर पत्थर क्यों बरसाए। सवाल ये है कि आखिर बग्वाल खेल की परंपरा है क्या? आइए आपको अब ये समझाते हैं। दरअसल पुरानी मान्यताओं के मुताबिक, पौराणिक काल में चार खेमों के लोग अपनी आराध्य मां वाराही देवी को प्रसन्न करने के लिए नर बलि दिया करते थे। कहा जाता है कि एक बार चमियाल खाम के एक परिवार की नरबलि देने की बारी थी। लेकिन परिवार में सिर्फ एक वृद्ध महिला और उसका एक बेटा ही बचा था।

कहा जाता है कि महिला ने अपने बेटे की रक्षा के लिए मां बाराही देवी की स्तुति की। मां बाराही देवी ने आखिरकार महिला को दर्शन दिए। इस दौरान मां बाराही देवी ने चारों खेमों को नरबलि की बजाय बग्वाल खेलने के निर्देश दिए। तभी से बग्वाल खेल की शुरुआत हुई। परंपरा के मुताबिक, हर साल रक्षाबंधन के मौके पर यहां मेला लगता है और बग्वाल खेली जाती है। बग्वाल की शुरुआत मंदिर के पुजारी के शंख बजाने से शुरू होती है, और तब तक जारी रहती है जब तक एक व्यक्ति के बराबर खून न बह जाए। जैसे ही पुजारी को लगता है कि एक नरबलि के बराबर खून बह गया है तो वह खेल को खत्म करने का निर्देश देता है। इसके बाद सभी खेमों के लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और फिर अपने-अपने घरों को चले जाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *