फोटो: न्यूज़ नुक्कड़
बिहार में मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण” (SIR) अभियान को लेकर नागरिक संगठनों और विशेषज्ञों ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं। पटना के BIA हॉल में आयोजित एक जन सुनवाई में बिहार के 14 जिलों से आए करीब 250 नागरिकों ने भाग लिया और SIR की प्रक्रियात्मक खामियों और जमीनी कठिनाइयों को साझा किया।
यह सुनवाई भारत जोड़ो अभियान, जन जागरण शक्ति संगठन, NAPM, स्वराज अभियान, समर चैरिटेबल ट्रस्ट और कोसी नवनिर्माण मंच द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित की गई थी।
कटिहार से आई मजदूर फूल कुमारी देवी ने भावुक होकर बताया कि BLO द्वारा मांगे गए दस्तावेज़ जुटाने के लिए उन्हें अपने राशन का चावल बेचना पड़ा और दो दिन की मज़दूरी भी गंवानी पड़ी।
अन्य प्रतिभागियों ने भी बताया कि SIR प्रक्रिया में कई बार BLO की जगह वार्ड पार्षद, आंगनवाड़ी सेविका या सफाईकर्मी दस्तावेज़ लेने आ रहे हैं, जो कि नियमों के विपरीत है। कई लोगों को फॉर्म भरने का तरीका नहीं बताया गया, तो कुछ को तो फॉर्म ही नहीं मिला। कई मामलों में बिना हस्ताक्षर के फॉर्म जमा कर दिए गए, रिसीविंग नहीं दी गई, और ₹100 तक लेकर फॉर्म भरवाए गए।
इस जन सुनवाई में पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला, पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश, अर्थशास्त्री जां द्रेज, समाजशास्त्री प्रो. नंदिनी सुंदर, सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी, और प्रो. दिवाकर जैसे प्रतिष्ठित लोग शामिल रहे।
न्यायमूर्ति अंजना प्रकाश ने कहा कि दस्तावेज़ मांगने की मौजूदा प्रक्रिया गांव के गरीब लोगों के लिए अव्यावहारिक और असंवैधानिक है।
वजाहत हबीबुल्ला ने प्रशासन पर “लोगों की मदद करने की बजाय उन्हें तंग करने” का आरोप लगाया।
ज्यां द्रेज ने SIR को “संशोधित नहीं, बल्कि रद्द करने” की मांग की और इसे मतदाता सूची की गुणवत्ता के लिए खतरा बताया।
भंवर मेघवंशी ने कहा कि यह प्रक्रिया संविधान की प्रस्तावना में दिए गए राजनीतिक न्याय और समानता के विरुद्ध है।
प्रो. नंदिनी सुंदर ने इसे “लोकतंत्र के लिए खतरनाक” बताया और कहा कि “हम यह लड़ाई जारी रखेंगे”।
प्रो. दिवाकर ने चिंता जताई कि लोकतंत्र “अब जनता का नहीं रहा” और उसे “वापस लाने के लिए संघर्ष करना होगा”।
जन सुनवाई के दौरान साझा किए गए अनुभवों और विशेषज्ञों की राय इस बात की ओर इशारा करती है कि SIR अभियान में पारदर्शिता, निष्पक्षता और न्यायसंगत प्रक्रिया की गंभीर कमी है। गरीब, दलित, महिला और प्रवासी वर्ग इस प्रक्रिया से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। BLO और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर अत्यधिक कार्यभार डालकर शिक्षा और पोषण जैसी योजनाओं को भी नुकसान हो रहा है।
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