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चीन से 1962 की जंग में उत्तरकाशी के इन दो गांवों को सेना ने बंकरों में किया था तब्दील, अब बसाने की तैयारी

देश में लॉकडाउन के बाद हजारों प्रवासी गांव लौटे हैं। लेकिन अभी भी पहाड़ कई ऐसे इलाके और गांव हैं जो विरान हैं।

प्रदेश सरकार ऐसे विरान गांवों को आबाद करने की प्लानिंग कर रही है। पलायन को रोकने और युवाओं को रोजगार देने के लिए सरकार कदम उठा रही है। सीमावर्ती गांवों को फिर से आबाद करने की कोशिश में सरकार जुटी गई है। भारत-चीन सीमा पर बसे नेलांग और जादूंग गांव में पर्यटन को बढ़ावा देने के सरकार ने प्लान तैयार किया है। इस संबंध में सरकार कदम उठा रही है। गांव वालों का कहना है कि पारंपरिक खेती से उनका गुजारा होना काफी मुश्किल हो गया है। ऐसे में ग्रामीणों को होम स्टे के साथ ही दूसरी योजनाओं से जोड़ने की जरूरत है, ताकि लोगों को गांव में ही रोजगार मिल सके और पलायन पर भी रोक लग सके।

नेलांग और जादूंग गांव के विरान होने की अलग ही कहानी है। वो साल 1962 का भारत-चीन युद्ध का दौर था जब इस गांव को खाली करवाया गया था। गांव को खाली करवाने के बाद यहां रहने वाले जाड़ समुदाय के लोगों को बगोरी में विस्थापित कर दिया गया था। कहते हैं कि उस समय सेना ने ग्रामीणों के घरों और खेतों को बंकरों में तब्दील कर दिया था। अभी भी जाडुंग गांव में कुछ घरों के अवशेष बचे हुए हैं। ऐसे में बगोरी गांव के ग्रामीण हर साल अपने लाल देवता की पूजा के लिए यहां आते हैं। ग्रामीणों के मुताबिक, सरकारी दस्तावेजों में उनकी नेलांग और जाडुंग गांव में करीब 1300 से 1400 नाली भूमि है, जिसका उन्हें अब तक मुआवजा नहीं दिया गया।

इलाके के लोगों का कहना है कि जाडुंग और नेलांग में अब कुछ भी नहीं बचा। यही वजह है कि गांव में लोगों को बसाना बेहद कठिन हो गया है। वहीं, पूर्व प्रधान नारायण सिंह राणा कहते हैं कि राज्य सरकार को पहले नेलांग और जाडुंग गांव के विस्थापितों को जमीन देनी होगी। इसके अलावा गांववालों को सड़क, सेब उत्पादन और होम स्टे योजनाएं से जोड़ना होगा। ताकि लोगों को आजीविका के साधन गांव में ही मिल सकें। तभी यहां लोगों को बसाने की प्लानिंग कामयाब हो पाएगी।

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