उत्तराखंड स्पेशल: कुमाऊं की ऐपण कला, पहाड़ को दिलाती है एक अलग पहचान!
ऐपण कुमाऊं की एक लोक चित्रकला की शैली है जो कि पहचान बन चुकी है कुमाऊं की गौरवशाली परंपरा है की।
अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और अनमोल परंपराओं को अपने में संजोए देवभूमि की अपनी एक अलग पहचान है। इस धरती पर एक से एक अनूठा लोकपर्व मनाया जाता है, जो यहां की प्रकृति, भूमि ,जंगल, देवताओं को समर्पित है। इसी के साथ ही यहां पर ऐसी कई सारी लोक कलाएं भी मौजूद है जो पहाड़ों की पहचान बन चुकी हैं। इन्हीं में से एक लोक चित्रकला है ऐपण। ऐपण परंपरा दीपावली के त्योहार में और समृद्ध हो जाती है। प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा घर होगा, जहां ऐपण नहीं दिखते। लोकजीवन का एक हिस्सा ऐपण की अनूठी परंपरा सदियों से प्रचलित है।
क्या है ऐपण लोक कला?
कुमाऊं में कुछ खास मौकों जैसे दीपावली, देवी पूजन ,लक्ष्मी पूजन, शिवपूजन, शादी वगैरह पर घर की चोखटों, दीवारों, आंगनों, मंदिरों को ऐपण से सजाने की परंपरा है। परंपरागत ऐपण प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते हैं। जैसे दीपावली के दिन घर पर बाहर सजी तुलसी दल से लेकर भीतर मंदिर तक छोटे-छोटे गोल आकार में लाल मिट्टी की पुताई की जाती है। इन गोलों में भीगे हुए चावल को सिलबट्टे में पीसकर तैयार किए बिस्वार से मां लक्ष्मी के पदचिन्ह बनाए जाते हैं। देहरी में और घर के दीवारों के निचले हिस्से में भी पांच से लेकर सात त्रिभुजाकार रेखाएं डाली जाती हैं। महिलाएं इसे अंगुलियों से ही तैयार करती हैं।