ARMY DAY SPECIAL: UTTARAKHAND..THE LAND OF BRAVES
पूरा देश आज सैन्य दिवस मना रहा है। देश उन वीर सपूतों को याद कर रहा है, जिन्होंने सजग प्रहरियों का दायित्व अपने प्राणों की आहुति देकर भी निभाया।
ऐसे वीर सपूतों को देश सलाम कर रहा है। बात उत्तराखंड के सैन्य इतिहास की करें तो यहां यहां सेना एक करियर नहीं बल्कि परंपरा है। इसी लिये देवभूमि को वीरों की भूमि भी कहा जाता है। प्रदेश के समृद्ध सैन्य इतिहास के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड को सैन्य धाम मानते हैं। देश की सेना में हर 100वां सैनिक उत्तराखंड का है। किसी भी सेना का जिक्र होता है तो उसमें देवभूमि उत्तराखंड का नाम गौरव से लिया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक उत्तराखंड के करीब नौ हजार युवा सेना में शामिल होते हैं।
फिलहाल प्रदेश मं 1,69,519 पूर्व सैनिकों के साथ ही करीब 72 हजार सेवारत सैनिक हैं। साल 1948 के कबायली हमले से लेकर कारगिल युद्ध और इसके बाद आतंकवादियों के खिलाफ चले अभियान में उत्तराखंड के सैनिकों की अहम भूमिका रही है। खास बात यह है कि उत्तराखंड के युवा अंग्रेजी हुकूमत में भी पहली पसंद में रहते थे। अंग्रेजों ने इस राज्य के वीरों को अनेक मेडल से नवाजा। आजादी से पहले उत्तराखंड के सपूतों को असामान्य सपूतों ने 3 विक्टोरिया क्रॉस, 53 इंडियन ऑडर ऑफ मेरिट, 25 मिलिट्री क्रॉस, 89 आईडी एसएम और 44 मिलिट्री मेडल हासिल किए थे।
चाहे 1962 में हुए चीन से युद्ध की बात करें, या फिर 1965 में पाकिस्तान से युद्ध हो या 1971 में भारत-पाक युद्ध में उत्तराखंड के जवानों का बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सिर्फ 1971 के युद्ध में उत्तराखंड के सबसे ज्यादा करीब 250 जवान शहीद हुए थे। वहीं साल 1962 में हुए युद्ध से अब तक उत्तराखंड के करीब 2285 जवान देश के लिए शहीद हुए हैं। देश के लिए इन युद्धों में अदम्य साहस का परिचय देने के लिए उत्तराखंड को अभी तक 6 परमवीर और अशोक चक्र, 29 महावीर चक्र, 3 अति विशिष्ट सेवा मेडल, 100 वीर चक्र, 169 शौर्य चक्र, 28 युद्ध सेवा मेडल, 745 सेनानायक, 168 मेंशन इन डिस्पैचिस जैसे मेडल हासिल हुए हैं।
सैन्य दिवस मनाने की वजह क्या है?
15 जनवरी को आर्मी डे मनाने के पीछे दो बड़ी वजह है। पहली ये कि 15 जनवरी 1949 के दिन से ही भारतीय सेना पूरी तरह ब्रिटिश थल सेना से आजाद हुई थी। दूसरी बात इसी दिन जनरल केएम करियप्पा को भारतीय थल सेना का कमांडर इन चीफ बनाया गया था। इस तरह लेफ्टिनेंट करियप्पा लोकतांत्रिक भारत के पहले सेना प्रमुख बने थे।