उत्तराखंड स्पेशल: देवभूमि का अमृत है टिमरु..बीपी, पेट और दांतों की हर बीमारी का है इलाज
टिमरु औषधीय पौधा है। जिसका इस्तेमाल टूथपेस्ट के साथ दूसरी दवाओं को बनाने में किया जाता है।
देवभूमि को प्रकृति की तरफ से ऐसा वरदान मिला है, कि ये जगह अनमोल नेमतों से बनी हुई है। यहां औषधीय पेड़-पौधों का भंडार है। नई पीढ़ी के लोग भले ही इसे ना समझें, लेकिन पुराने जमाने के लोग इन गुणों को बखूबी पहचानते हैं। इन औषधीय पौधों का इस्तेमाल कई बीमारियों को ठीक करने में किया जाता है। ऐसा ही एक पौधा है टिमरु है। इसे औषधीय गुणों का भंडार कहा जाये तो गलत ना होगा। टिमरु की छाल का इस्तेमाल दांतों का टूस्पेस्ट बनाने के लिए किया जाता है। जो दांतों की कई बीमारियों को बहुत ही फायदेमंद है। पहाड़ में इसका इस्तेमाल दातून के तौर पर होता है। टिमरु की लकड़ी से दातुन करने पर पायरिया नहीं होता।
टिमरु देसी नाम है। इसका वैज्ञानिक नाम जैंथेजाइमल अरमेटम है। पहाड़ में मिलने वाले इस पेड़ की विदेशों में खूब डिमांड है। चीन, नेपाल, तिब्बत, थाईलैंड और भूटान में टिमरु का इस्तेमाल दवा बनाने के साथ ही मसाले बनाने के लिए भी किया जाता है। पहाड़ों में लोग इसके बीज की चटनी भी बनाते हैं। पहाड़ी लोग टिमरु की लकड़ी को पवित्र माना जाता है और इसे मंदिरों में भी चढ़ाया जाता है।