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उत्तराखंड स्पेशल: आपकी लापरवाही है ग्लेशियर के पिघलने की प्रमुख वजह, नहीं संभले तो देखनी पड़ेगी बहुत बड़ी तबाही!

चमोली आपदा के बाद ये सवाल एक फिर प्रमुखता से पूछा जा रहा है कि आखिर इस तरह के डिजास्टर को हम कैसे रोक सकते हैं। तो इसका जवाब है हमारी-आपकी सजगता।

जीपी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान की स्टडी में पाया गया है कि हिमालय के ग्लेशियर साल दर साल छोटे हो रहे हैं। हाल में संस्थान ने पिथौरागढ़ के बालिंग और अरुणाचल के खागरी ग्लेशियर की डीप स्टडी की है। स्पेस एप्लिकेशन सेंटर अहमदाबाद की मदद की गई इस स्टडी में ये सामने आया कि ग्लेशियर हर साल 8 मीटर घट रहे हैं। ग्लेशियरों की घट रही ऊंचाई के लिए इंसानी हस्तक्षेप के साथ ही जलवायु परिवर्तन और जंगलों की आग सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है। ग्लेशियरों में आ रहा ये बदलाव बड़े संकट की ओर इशारा भी कर रहा है। वहीं, इसके चलते एशिया का पर्यावरण भी प्रभावित हो सकता है। ऐसे में हिमालयी पर्यावरण में हो रहे बदलावों के अनुरूप ठोस नीतियां बनाने की जरूरत है। जिससे मानवीय जिंदगियों पर इसके असर को रोका जा सके।

वहीं इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक में बर्फ की परत लगभग हर साल 400 अरब टन कम हुई है। इससे न केवल समुद्र के स्तर के बढ़ने की संभावना जताई जा रही है, बल्कि, कई देशों के प्रमुख शहरों के डूबने का खतरा भी बढ़ गया है। जो शहर समुद्र के बढ़ते स्तर से ज्यादा प्रभावित होंगे उसमें भारत की मुंबई और कोलकाता भी शामिल हैं।

ग्लेशियर पिघलने की वजह क्या है?
दुनिया में तकरीबन 2 लाख ग्लेशियर हैं। इनमें 1000 को छोड़ दें तो बाकी ग्लेशियरों का आकार बहुत छोटा है। ग्लेशियरों को धरती पर मीठे पानी के भंडार के रूप में जाना जाता है। जीवाश्म ईंधनों का बेहताशा इस्तेमाल, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन, ओजोन परत में छेद जैसे कई ऐसी वजह हैं, जिससे धरती के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। IPCC ने तो चेतावनी दी है कि इस सदी के आखिर तक हिमालय के ग्लेशियर अपनी एक तिहाई बर्फ को खो सकते हैं। अगर प्रदूषण इसी रफ्तार से बढ़ता रहा तो यूरोप के 80 फीसदी ग्लेशियर भी 2100 तक पिघल जाएंगे। जिस तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं उससे पूरी मानव जाति पर खतरा मंडरा सकता है। आज भी दुनिया की अधिकतर आबादी साफ पानी के लिए ग्लेशियरों पर ही निर्भर है। हिमालय के ग्लेशियरों से मिलने वाली पानी से तो लगभग दो अरब लोग लाभान्वित होते हैं। कृषि के लिए पानी भी इन्हीं ग्लेशियरों से मिलता है। अगर ग्लेशियरों से पानी आना बंद हो जाए तो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। वहीं, यूरोप में भी पीने के पानी का अकाल पड़ जाएगा। सूखे की स्थिति से आम जनजीवन भी खतरे में पड़ सकता है।

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