उत्तराखंड की इस गुफा में गणेश का कटा हुआ सिर आज भी है महफूज! भगवान भोलेनाथ खुद करते हैं रक्षा
हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड प्रकृति की अमूल्य अलौकिक धरोहर है। यहां देवी देवताओं का वास है, यही वजह है कि उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है।
शास्त्रों में भी उत्तराखंड का कई बार जिक्र किया गया है। यहां अनेकों धार्मिक स्थल है जिसकी अलग अलग मान्यता है। वैसे तो ये दुनिया जानती है कि भगवान भोलेनाथ ने क्रोध में आकर अपनी ही पुत्र गणेश जी का सिर काट कर फेंक दिया था। लेकिन जब उनका गुस्सा ठंडा हुआ तो उन्होंने गणेश से धड़ हाथी के बच्चे का सिर लगा दिया था। ये तो सब जानते ही हैं।
लेकिन शायद ये बहुत कम लोगों को पता होगा कि भगवान संकर द्वारा काट कर गिराया गणेश जी का मस्तक बाद में कहां रखा गया और आज के समय में क्या वो है या नहीं। इन सवालों का जवाब उत्तराखंड आकर मिल जाता है। शास्त्रों के अनुसार गणेश जी का असली शीश आज तक एक ऐसी जगह पर महफूस पड़ा है, जिसके साथ बहुत से रहस्य जुड़े हुए हैं।
मान्यताओं के अनुसार भोलेनाथ ने अपने पुत्र गणेश के कटे हुए सिर को उत्तराखंड की एक गुफा में रख दिया था। आपको सुनकर हैरानी जरूर होगी लेकिन ये सच्चाई है। ये गुफा कहीं और नहीं बल्कि उत्तारखंड के पिथौरागढ़ में स्थित है, जिसे पाताल भुवनेश्वर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इसका वर्णन स्कंद पुराण में भी पढ़ने को मिलता है। कहते हैं कि यहां गणेश जी के कटे हुए सिर के इनकी एक मूर्ति स्थापित है जिसे आदिगणेश कहा जाता है।
पिथौरागढ़ की ये गुफ़ा अब तक यहं को लोगों के साथ-साथ अन्य देशों से आने वाले भक्तों की भी आस्था का केंद्र है। बता दें कि गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब 90 फुट अंदर है। कुछ लोगों का कहना है कि इस गुफा की खोज आदिशंकराचार्य द्वारा की गई थी। आपको बता दें, पाताल भुवनेश्वर नाम की इस गुफा में भगवान गणेश की कटी शिला रूपी प्रतिमा के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल सुशोभित है। कहते हैं इस ब्रह्मकमल से गणपति के शिलारूपी मस्तक पर जल की दिव्य बूंद हमेशा टपकती रहती हैं। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई पड़ती है। ऐसी मान्यता प्रचलित है कि ये ब्रह्मकमल भगवान शिव ने स्वयं यहां स्थापित किया था।