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उत्तराखंड स्पेशल: बागेश्वर में बने कालिका मंदिर का इतिहास है बहुत रोचक, पढ़िये किसने और कब कराया था निर्माण?

उत्तराखंड देवभूमि है, यहां के कण-कण में देवताओं का वास है। हर शहर में आपको प्रसिद्ध मंदिर मिल जाएगा। उन्हीं में से एक है बागेश्वर के कांडा में बना कालिका मंदिर।

इस मंदिर की स्थापना दसवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। ऐसा कहा जाता है कि कांडा में काल का आतंक था। हर साल यहां एक शख्स की जान चली जाती थी। कैलाश यात्रा पर यहां पहुंचे जगतगुरु ने लोगों की रक्षा के लिए मां काली को स्थापित किया। तभी से यहां नवरात्रों के समापन पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

कांडा के कालका मंदिर में हर साल नवरात्र पर लगने वाले दशहरा मेले में हजारों लोग शिरकत करते हैं। आस्था की इस परंपरा का इतिहास एक हजार साल पुराना होने की मान्यता है। ऐसी मान्यता है कि इस क्षेत्र में काल का आतंक था। वो हर साल एक नरबलि लेता था। अदृश्य काल जिसका भी नाम लेता, उसकी फौरन मौत हो जाती थी। इससे इलाके के लोग काफी परेशान थे।

कहा जाता है कि दसवीं सदी में जगतगुरु शंकराचार्य कैलाश यात्रा पर जा रहे थे। उन्होंने वर्तमान कांडा पड़ाव नामक स्थान पर आराम किया। इस दौरान लोगों ने उन्हें काल से जुड़ी आपबीती सुनाई। जगतगुरु ने स्थानीय लोहारों के हाथों लोहे के नौ कड़ाहे बनवाए। ललोक मान्यताओं के मुताबिक उन्होंने अदृश्य काल को सात कड़ाहों के नीचे दबा दिया और उसके ऊपर एक विशाल शिला रख दी। उन्होंने यहां एक पेड़ की जड़ पर मां काली की स्थापना की। कहा जाता है कि इसके बाद से वहां काल का खौफ खत्म हो गया। तभी से यहां हर नवरात्र पर पूजा-पाठ का आयोजन होता है। दशमी पर लगने वाले मेले में हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। यह मेला व्यापारिक गतिविधि का भी केंद्र है। 1947 में स्थानीय लोगों ने यहां मंदिर का विधिवत निर्माण किया।

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