उत्तराखंड स्पेशल: बाघ रूप में विराजमान हैं भगवान शिव, भैरवनाथ हैं द्वारपाल, पढ़िये इस मंदिर का पूरा इतिहास
उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है की यहां हर जिले, हर शहर, हर इलाकों में भगवान किसी ना किसी रूप में विराजमान हैं।
ऐसी ही एक जगह बागेश्वर में है। गोमती, सरयू नदी के संगम पर स्थित है बागेश्वर का बागनाथ मंदिर। ये मंदिर धर्म के साथ पुरातात्विक के नजरिये से भी काफी महत्वपूर्ण है। बागेश्वर को मार्केंडेय ऋषि की तपोभूमि भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान शंकर यहां बाघ रूप में निवास करते हैं। पहले इस जगह को व्याघ्रेश्वर नाम से जाना गया। बाद में इसका नाम बागेश्वर हो गया। बाणेश्वर मंदिर को चंद्र वंशी राजा लक्ष्मी चंद ने 1602 में बनाया था। मंदिर के पास में ही बागनाथ मंदिर है।
ये मंदिर भी वास्तु कला की दृष्टि से बागनाथ मंदिर के समकालीन लगता है। इसके पास में ही भैरवनाथ का मंदिर बना है। बताया जाता है कि बाबा कालभैरव इस मंदिर में द्वारपाल रूप में निवास करते हैं और यहीं से पूरी दुनिया पर नजर रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि सातवीं सदी से कत्यूर काल में इस जगह पर भव्य मंदिर रहा होगा। शिव पुराण के मानस खंड के मुताबिक इस नगर को शिव के गण चंडीश ने बसाया था। कहा जाता है कि महादेव की इच्छा के बाद ही इस नगर को बसाया गया था। ये भी कहा जाता है कि चंडीश द्वारा बसाया गया नगर महादेव को बहुत भाया। पहले मंदिर बहुत छोटा था। बाद में चंद्रवंशीय राजा लक्ष्मी चंद्र ने 1602 में मंदिर को भव्य रूप दिया।
पुराणों में लिखा गया है कि अनादिकाल में मुनि वशिष्ठ अपने कठोर तपबल से ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को ला रहे थे। इस जगह पर ब्रह्मकपाली के पास मार्कण्डेय ऋषि तपस्या में लीन थे। वशिष्ट जी को उनकी तपस्या को भंग होने का खतरा सताने लगा। कहा जाता है कि धीरे धीरे वहां जल भराव होने लगा। सरयू नदी आगे नहीं बढ़ सकी। उन्होंने शिवजी की आराधना की। महादेव ने बाघ का रूप रख कर माता पार्वती को गाय बना दिया।
कहा जाता है कि महादेव ने ब्रह्मकपाली के पास गाय पर झपटने की कोशिश की। इस दौरान मार्कण्डेय ऋषि की आंखें खुल गई। इसके बाद ऋषि बाघ को गाय से मुक्त कराने के लिए दौड़े तो बाघ ने महादेव और गाय ने माता पार्वती का रूप धर दिया। मार्कण्डेय ऋषि को दर्शन देकर इच्छित वर दिया और मुनि वशिष्ठ को आशीर्वाद दिया। इसके बाद सरयू आगे बढ़ सकी। बागनाथ मंदिर में मुख्य रूप से बेलपत्र से ही पूजा होती है। यहां कुमकुम, चंदन और बताशे चढ़ाने की भी परंपरा है। इसके साथ ही महादेव को खीर और खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। बागनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी रावल जाति के लोग होते हैं।