उत्तराखंड: आंदोलन को मजबूत करने में जुटे किसान नेता, राज्यों में घूमकर बता रहे कृषि कानून की खामियां
अल्मोड़ा में संयुक्त किसान मोर्चा गाजीपुर बॉर्डर के प्रवक्ता जगतार सिंह बाजवा ने कृषि कानूनों को लेकर प्रेस से बात की।
जगतार सिंह बाजवा ने प्रेस से बात करते हुए कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर जो आंदोलन चल रहा है वह पूरे देश को बचाने का आंदोलन है। उन्होंने कहा कि किसान पिछले पांच महीनों से तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने और एमएसपी की गारंटी दिए जाने की मांग को लेकर अपना घरबार छोड़कर धरने पर है। सरकार हठधर्मिता अपना रही है और किसानों के आंदोलन को बदनाम करने में तुली हुई है।
जगतार सिंह बाजवा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी कहते है कि किसान बताएं कि इन कृषि कानूनों में काला क्या है और यही बताने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से पर्चा जारी किया गया है। इस पर्चे में मुख्य बिंदुओं को रेखांकित किया गया है। इससे खेती करने वाले किसान तो प्रभावित तो होंगे ही साथ ही खेतिहर मजदूर, बटाई में काम कर रहे मजूदूर भी प्रभावित होगें।
उन्होंने कहा कि खेती कॉरपोरेट के हाथ में चले जाने की संभावना है। मंडिया खत्म होंगी। सार्वजनिक वितरण प्रणाली प्रभावित होगी। जमीन को बटाई पर लेकर खेती करने वाले बटाईदार के साथ ही पशुपालन करने वाले लोग भी प्रभावित होगें, क्योंकि पशुओं के लिये चारा किसान के खेतों से ही आता है।
जगतार सिंह बाजवा ने कहा कि अगर खेती कॉरपोरेट के हाथ में चले जायेगी तो उनको चारा नही मिलेगा। कहा कि पहाड़ों में सब्जी उत्पादकों और सब्जी का छोटा-मोटा काम करने वाले लोगों पर भी इसकी मार पड़ेंगी क्योंकि खरीददार उनके पास से उत्पाद लेकर पास की मंडियो में बेचते है और मंडिया खत्म होने से यह चेन टूट जायेगी। और यह आंशका है कि कंपनियों के कलैक्शन सेंटर खुलेंगे और वो कम रेट पर खरीदकर भंडारण करने के बाद महंगे दामों पर बेचेंगे। कहा कि यह कानून पहाड़ की खेती को भी बर्बाद कर देगा।
उन्होंने कहा कि दिल्ली के बॉर्डर पर चल रहा आंदोलन देश की 80 प्रतिशत जनता के लिये चल रहा है। उन्होंनें तीन कृषि कानूनों के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम को खत्म कर दिया है। जबकि पहले कानून में आवश्यक वस्तुओं के भंडारण करने की क्षमता सीमित थी। नए कानून से बड़े व्यापारी सस्ती दरों पर अनाज आदि खरीदकर अपने भंडारों में जमा कर देंगे और फिर महंगे दामो में बेचकर मुनाफा कमायेंगे। ना तो किसान को उसकी उपज का उचित मूल्य मिलेगा और ना ही उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर अनाज मिलेगा। कॉरपोरेट के हाथ में कांट्रेक्ट खेती जाने पर शर्तो के अनुसार खेती करनी होगी और किसान को इससे नुकसान होना तय है। सरकार प्राइवेट मंडियों को खड़ा कर रही हैं इसके पीछे सरकार की मंशा सरकारी मंडियों को खत्म करने की है।
(अल्मोड़ा से हरीश भंडारी की रिपोर्ट)