पुण्यतिथि विशेष: उमराव जान जैसी बेहतरीन फिल्मों के संगीत देने वाले ख़य्याम के फिल्मी सफर की कहानी

हिंदी सिनेमा के मशहूर संगीतकार ख़य्याम की आज चौथी पुण्यतिथि है। उनका पूरा नाम मोहम्मद ज़हूर ख़य्याम हाशमी था।

कभी-कभी, रज़िया सुल्तान, उमराव जान, बाज़ार और नूरी जैसी तमाम हिट फ़िल्मों में अपना ख़ूबसूरत संगीत देने वाले ख़य्याम फ़िल्म इंडस्ट्री के जाने माने म्युज़िक डॉयरेक्टर थे। ख़य्याम का जन्म 18 फ़रवरी 1927 को अविभाजित पंजाब के राहो शहर में हुआ था।

ख़य्याम नें 1977 में रिलीज़ हुई यश चोपड़ा की फ़िल्म कभी-कभी में अमिताभ के लिए गायक मुकेश की आवाज़ का चुनाव करके सब को चौका दिया था। क्यूंकि उन दिनों अमिताभ बच्चन के लिए ज़्यादातर किशोर कुमार ही गाने गाया करते थे, लेकिन इस बार ख़य्याम उनके लिए मुकेश की आवाज़ में किसी गीत को रिकॉर्ड करवाने जा रहे थे। फ़िल्म कभी-कभी का टाईटिल ट्रैक मुकेश ने गाया, और वह गाना इतना हिट हुआ की लोगों ने ख़य्याम के संगीत की ख़ूब तारीफ़ की। आज भी लोग उस गीत को बड़े शौक़ से सुनते और गुनगुनाते हैं।

इसी तरह 1982 में रिलीज़ हुई मुज़फ्फ़र अली की फ़िल्म उमराव जान के संगीत को कौन भूल सकता है। शहरयार की लिखी ग़ज़लों को ख़य्याम ने ऐसी ख़ूबसूरत धुनों में पिरोया कि वह सारे गीत और ग़ज़ल सदा के लिए सुनने वालों के दिलों में समा गए। साथ ही आशा भोसले को इसी फ़िल्म की गज़लों से बहुमुखी गायिका होने का ख़िताब मिला। फ़िल्म में रेखा पर फ़िल्माई गई उनकी सारी गज़लों को लोग आज भी बहुत दिल से सुनते हैं।

ख़य्याम 4 दशकों तक बॉलीवुड फ़िल्मों के लिए म्युज़िक बनाते रहे। साल 1982 में आयी मुज़फ़्फ़र अली की फ़िल्म उमराव जान के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला था। 1982 में उमराव जान और 1977 में आई यश चोपड़ा की फ़िल्म कभी कभी के लिए उन्होंने दो बार बेस्ट म्युज़िक डॉयरेक्टर का फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड भी जीता था। साल 2007 में ख़य्याम को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2010 में फ़िल्मफ़ेयर के लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड और 2018 उन्हें हृदयनाथ मंगेशकर अवॉर्ड से भी नवाज़ा गया। ख़य्याम को साल 2011 में भारत सरकार ने पदम् भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया था।

उनके संगीत से सजी कई फ़िल्में ऐसी भी आईं, जो पर्दे पर तो फ़्लॉप रहीं पर उसमें दिया गया उनका संगीत बहुत हिट रहा। जैसे 1977 में आई फ़िल्म शंकर हुसैन पर्दे पर तो कमाल नही दिखा पाई, लेकिन उसके सारे गाने बहुत हिट साबित हुए।

ऐसे ही ख़य्याम के संगीत से सजी फ़िल्म रज़िया सुल्तान 1983 में रिलीज़ हुई थी। इस फ़िल्म के संगीत का ज़िम्मा ख़य्याम मिलने के पीछे की कहानी भी काफ़ी दिलचस्प है। दरअसल जब बॉलीवुड के मशहूर फ़िल्म निर्माता-निर्देशक कमाल अमरोही अपनी फ़िल्म रज़िया सुल्तान बना रहे थे, जिसमें उन्होंने प्रदीप कुमार, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, वीना, परवीन बॉबी, अजीत, सारिका और सोहराब मोदी जैसे दिग्गज एक्टर्स को कॉस्ट किया था। उस वक़्त बॉलीवुड में संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल अपने कॅरियर के पीक पर थे। उनका संगीत हिंदी सिनेमा पर छाया हुआ था। इसलिए कमाल अमरोही ने भी अपनी फ़िल्म रज़िया सुल्तान के लिए लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को ही बतौर म्युज़िक डॉयरेक्टर साइन कर लिया।

जब लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने अपनी बनाई धुनें कमाल अमरोही को सुनाई तो कमाल अमरोही को उनकी बनाई तेज़ तर्रार धुनें पसंद नहीं आईं। दरअसल कमाल अमरोही अपनी इस फ़िल्म के लिए बहुत सॉफ़्ट म्युज़िक चाहते थे। इसलिए उन्होंने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से दूसरीं धुनें बनाने को कहा, अब यह बात उन दोनों को बहुत नागवार गुज़री। लक्ष्मीकान्त और प्यारेलाल सोचने लगे की उनकी बनाई धुन को कोई ऐसे कैसे रिजेक्ट कर सकता है। इसके एक दिन कमाल अमरोही नई धुनों को सुनने के लिए लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के घर पहुंचे। जहां उन्हें इंतज़ार करने के लिए कहा गया। कहा जाता की उस वक़्त लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल अपने किसी काम में व्यस्त थे। अब कमाल अमरोही को बैठे बैठे काफ़ी समय हो गया। उन्होंने इस बात को अपना अपमान समझा और वह उठकर वहां से चले आए, साथ ही उन्होंने अपनी फ़िल्म रज़िया सुल्तान के लिए नए संगीतकार की खोज भी शुरू कर दी।

एक दिन कमाल अमरोही की पत्नी मीना कुमारी ने उन्हें संगीतकार ख़य्याम का नाम सुझाया। उन्होंने उनसे कहा की कैसे उन दोनों को फ़िल्म शगुन का वह गाना बहुत पसंद आया था- “पर्वतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है, सुरमई उजाला है चम्पई अंधेरा है” इस गाने को भी म्युज़िक डॉयरेक्टर ख़य्याम ने ही बनाया था। ख़य्याम उस वक़्त इंडस्ट्री में अपनी एक अलग तरह की धुनों के लिए जाने जाते थे। उनकी धुनें बहुत फ़ास्ट नही होती थीं बल्कि उनकी धुनों में लिपटकर नग़मों को नई ख़ूबसूरती मिल जाती थी। इसीलिए उसी वक़्त कमाल अमरोही ने ख़य्याम से ही अपनी फ़िल्म रज़िया सुल्तान का संगीत बनवाने का फ़ैसला कर लिया। ख़य्याम ने फ़िल्म के लिए वैसा ही म्युज़िक बनाया जैसा की कमाल अमरोही चाहते थे। फ़िल्म के सभी गाने एकदम दिल को छू लेने वाले साबित हुए। फ़िल्म रज़िया सुल्तान जब रिलीज़ हुई तो सभी ने ख़य्याम के संगीत की ख़ूब तारीफ़ की। इसके साथ ही सुरों की देवी लता मंगेशकर ने भी इस फ़िल्म में अपने कॅरियर के सुपरहिट गाने गाए। जो की ख़य्याम के म्युज़िक पर कोई जादू सा समां बांध देते हैं।

फ़िल्म रज़िया सुल्तान में हब्शी याक़ूत के किरदार के लिए ख़य्याम कोई भारी आवाज़ चाहते थे। जो की उस किरदार पर एक दम फिट बैठे। उन्होंने उसके लिए कई गायकों का ऑडिशन लिया, लेकिन कोई गायक उनकी समझ में नही आ रहा था। तब किसी ने उन्हें क़ब्बन मिर्ज़ा का नाम सुझाया। जो की उस वक़्त विविध भारती की एक जानी मानी आवाज़ थे, साथ ही वह कई महफ़िलों में गाना भी गाया करते थे। जब ख़य्याम ने क़ब्बन मिर्ज़ा को ऑडिशन के लिए बुलाया तो उन्होंने उनसे मोहर्रम में पढ़ा जाने वाला नौहा और मर्सिया सुनाने को कहा। क़ब्बन मिर्ज़ा ने इतनी ख़ूबसूरत आवाज़ में ख़य्याम को नौहा और मर्सिया सुनाया कि उन्होंने फ़ौरन याक़ूत के किरदार के लिए क़ब्बन मिर्ज़ा की आवाज़ को फ़ाइनल कर दिया। उसके बाद क़ब्बन मिर्ज़ा ने फ़िल्म के दो गानों को अपनी आवाज़ दी। जो की फ़िल्म के रिलीज़ होने पर बहुत पॉपुलर हुए और रातोंरात क़ब्बन मिर्ज़ा एक स्टार बन गए।

फ़िल्म रज़िया सुल्तान के ख़ूबसूरत गीतों को लिखा था, मशहूर गीतकार और शायर जां निसार अख़्तर ने और उनके शानदार गीतों की धुनें तैयार की म्युज़िक डॉयरेक्टर ख़य्याम ने। इस जोड़ी के गाने जब सुनने को मिले तो सभी इन दोनों की तारीफ़ किए बिना नही रह पाए। जां निसार अख़्तर बॉलीवुड में मौजूदा दौर के मशहूर राइटर और गीतकार जावेद अख़्तर के वालिद थे। आज उनकी भी 47वीं पुण्यतिथि है।

ख़य्याम अपने आख़िरी दिनों में काफ़ी बुज़ुर्ग हो जाने की वजह से कई बीमारियों से जूझ रहे थे। लंग्स में इन्फ़ेक्शन हो जाने की वजह से 28 जुलाई 2019 को उन्हें मुम्बई के सुजय हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। जहां 19 अगस्त 2019 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से 92 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।

(न्यूज़ नुक्कड़ के लिए अतहर मसूद का लेख)

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