ओपी नय्यर यानी ओंकार प्रसाद नय्यर, हिन्दी सिनेमा के वो मशहूर संगीतकार थे, जिनके बिना हिन्दी सिनेमा के संगीत की बातें अधूरी हैं।
ओपी नय्यर ही वो पहले संगीतकार थे, जिन्होंने भारतीय फिल्म संगीत में घोड़ों की टापों का इस्तेमाल कर फिल्मी संगीत को और खूबसूरत बना दिया। इसके बाद तमाम संगीतकारों ने भी घोड़ों की टापों का इस्तेमाल अपने संगीत में किया। ओपी नय्यर का जन्म 16 जनवरी, 1926 को लाहौर के नय्यर परिवार में हुआ। मां-बाप ने उनका नाम ओंकार प्रसाद नय्यर रखा जो बाद में ओपी के नाम से मशहूर हुए। बचपन में पिता से उन्होंने खूब मार खाई, जिससे वो तभी से ही बहुत विद्रोही स्वभाव के हो गए और फिर एक दिन पिता से हुई अनबन के बाद उन्होंने घर छोड़ दिया, क्यूंकि संगीत से उनको बचपन से ही बहुत लगाव था। इसलिए उन्होंने घर छोड़ने के बाद एक गर्ल्स कॉलेज में बतौर संगीत के शिक्षक के तौर पर नौकरी कर ली, लेकिन यहां भी वो लम्बे समय तक नहीं टिक पाए। वजह ये थी कि उस कॉलेज की प्रधान अध्यपिका से उनका अफेयर शुरू हो गया जो की कॉलेज के प्रबंधकों को नागवार गुज़रा और नतीजतन उनको कॉलेज से निकाल दिया गया।
इसके बाद ओपी नैय्यर आकाशवाणी में नौकरी करने लगे। इसी दौरान उनकी मुलाक़ात मशहूर गायक सीएच आत्म से हुई। उनके कहने पर तब उन्होंने उनके लिए एक गीत कम्पोज़ किया। गीत के बोल थे “प्रीतम आन मिलो”। इस गीत के महनताने के तौर पर उन्हें 12 रुपये मिले और वह मशहूर भी हुए। इसके बाद वो जब सफल संगीतकार बन गए तब उनकी फीस लाखों में होती थी। नय्यर अपने वक़्त के सबसे महगे संगीतकार हुआ करते थे।
एक दिन उनको सूझा की क्यों ना बॉम्बे चला जाए और वहां ऐक्टिंग में किस्मत आज़माई जाए। चूंकि नय्यर दिखने में काफ़ी हैण्डसम थे, लिहाज़ा वो बॉम्बे आ गए। लेकिन क़िस्मत को कुछ और गी मंज़ूर था, इसलिए ये अक़्ल भी उन्हें जल्दी आ गई कि सिर्फ़ अच्छी शक़्लो सूरत से फिल्म का हीरो नहीं बना जा सकता। इसी दौरान 1949 में उनकी मुलाक़ात फ़िल्म निर्माता कृष्ण केवल से हुई जो उस वक़्त अपनी फिल्म “क़नीज़” बना रहे थे। फिल्म में उन्होंने नय्यर को बैकग्राउंड म्यूज़िक देने को कहा, जिसमे नय्यर ने संगीत दिया और इसके बाद इनके संगीत से सजी फिल्म “आसमान” और “छम छमा छम” आई। इसके बाद वो बतौर संगीतकार फिल्म इन्डस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में क़ामयाब हुए।
नय्यर की मुलाक़ात इसके बाद उस वक़्त की मशहूर गायिका गीता दत्त से हुई। जिन्होंने उनकी मुलाक़ात मशहूर एक्टर, निर्माता और निर्देशक गुरु दत्त से करवाई और नतीजतन गुरु दत्त ने उन्हें 1954 में अपनी फिल्म आर-पार और 1955 में मि.एण्ड मिसेज़ 55 के संगीत की ज़िम्मेदारी सौंपी और दोनों ही फिल्मों का संगीत बहुत ही हिट हो गया, इसके बाद तो नय्यर फिल्म इन्डस्ट्री के मशहूर संगीत निर्देशक बन गए और फिर उन्होंने सी.आई.डी, तुमसा नहीं देखा, बाप रे बाप, हाउड़ा ब्रिज जैसी हिट फिल्मों का संगीत दिया, फिल्म सीआईडी में उन्होंने आशा भोसले को अवसर दिया और फिर आशा भोसले के साथ उन्होंने बहुत से हिट गाने बनाए। एक और किस्सा इनका बहुत मशहूर है कि 1950 के दशक में आल इंडिया रेडियो ने उनके गानों को ज़्यादा मॉडर्न और पश्चिमी संगीत से प्रेरित बताकर बैन कर दिया था और बहुत लम्बे समय तक भारतीय रेडिओ पर उनके गाने नहीं बजे, लेकिन नय्यर पर इस बात का तनिक भी असर नहीं हुआ और वो एक से एक नई धुन तैयार करते गए जो की हिट गानों में तब्दील होते गए।
यहां मैं एक बात और अहम बताना चाहूंगा की नय्यर ने अपने पूरे करियर में उस वक़्त की अव्वल नम्बर की गायिका सुरों की मलिका लता मंगेशकर से एक भी गाना नहीं गवाया। बाज़ लोगों ने इसकी वजह ये बताई की लता मंगेशकर से उनकी कभी बनी नहीं। शायद इसीलिए उन्होंने कभी लता मंगेशकर से कोई गाना नहीं गवाया। एक और दिलचस्प बात ये है की नय्यर साहब ने अपने पूरे करियर में लता जी की ही छोटी बहन आशा भोसले से ज़्यादातर गाने गवाए।
एक इंटरव्यू में नय्यर ने खुद इस बात को स्वीकारते हुए कहा की वह जिस तरह के गाने बनाते हैं। उसके लिए आशा भोसले की ही आवाज उपयुक्त है, लेकिन असल बात उसके पीछे की बात यह है की नय्यर अपनी पहली फिल्म “आसमान” के आठ गानों में से एक गाना लता मंगेशकर से गवाना चाहते थे जो की फिल्म की सपोर्टिंग ऐक्ट्रेस पर फिल्माया जाना था, लेकिन लता इस बात पर अड़ गईं कि वह इतनी बड़ी गायिका होकर फिल्म की सह नायिका के लिए नहीं गाएंगी। बस यही बात नय्यर को चुभ गई और फिर इसके बाद उन्होंने अपने पूरे करियर में लता मंगेशकर से तौबा कर ली और आशा भोसले और गीता दत्त से ही अपनी फिल्मों में गाने गवाए। कहते हैं कि अख्खड़ मिजाज़ की वजह से उनकी मो. रफ़ी से भी अनबन हो गई थी और 1973 में आशा भोसले से भी उनकी किसी बात पर खटपट हो गई, जिसके बाद उन्होंने दिलराज कौर, वाणी जयराम और कविता कृष्णमूर्ती जैसी गायिकाओं से अपने गीत गवाए। लेकिन फिर वो बात नहीं आ पाई जो पहले हुआ करती थी उनके संगीत में।
नय्यर ने कभी कोई संगीत की शिक्षा नहीं ली थी। लेकिन उन्होंने अपने संगीत में कुछ ऐसे नये नये प्रयोग किये, जिससे उन्होंने फिल्म संगीत को और खूबसूरत बना दिया। उन्होंने ही घोड़ो की टापों का सबसे पहले इस्तेमाल बतौर संगीत किया जो की लोगों ने काफ़ी पसंद भी किया, वो फिल्म थी बीआर चोपड़ा निर्देशित “नया दौर”।
“नया दौर” में दिलीप कुमार, वैजयंती माला और अजीत मुख्य कलाकार थे और गीत के बोल थे, “मांग के साथ तुम्हारा मैने मांग लिया संसार”। इसी गीत में उन्होंने घोड़ों की टापों को म्यूज़िक बना कर उसे गाने में प्रयोग किया और गीत बहुत ज़्यादा सुपर हिट हो गया। इसी फिल्म के गीत “उड़े जब-जब ज़ुल्फें तेरी” में उन्होंने तालियों का इस्तेमाल कर इस गाने को और खूबसूरत बना दिया। इसी फिल्म का एक और गीत बहुत ज़्यादा हिट हुआ था जो आज भी बारातों में खूब गाया बजाया जाता है। जिस पर लोग ना चाहते हुए भी थिरकने को मजबूर हो जाते हैं और वह गीत है “ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का”….यह गीत आज भी उतना ही पॉपुलर है जितना की जब यह बना था।
स्वभाव में अख्खड़ पन और विद्रोह जो उन्हे बचपन से मिला था वह उनके जीवन के अन्तिम पलों तक उनके साथ रहा। 28 जनवरी, 2007 को वह इस दुनिया से रुखसत हो गए और जाते जाते ये भी कह गए की उनकी अंत्येष्टि में उनके घर परिवार का कोई सदस्य ना शामिल हो और हुआ भी ऐसा ही। खैर ये रही ओ.पी नय्यर की जिन्दगी की कुछ खास बातें, हक़ीक़त में नय्यर साहब हिन्दी सिनेमा के वो महान संगीतकार थे, जिनके ज़िक्र के बिना भारतीय फिल्म संगीत की बातें अधूरी हैं।
(न्यूज़ नुक्कड़ के लिए अतहर मसूद की रिपोर्ट)
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