जम्मू-कश्मीर को धरती का जन्नत कहा जाता है। यहां की प्राकृतिक खूबसूरती देखते ही बनती है। दुनिया भर से लोग यहां घूमने आते हैं। इस वक्त कश्मीर में बड़ा बदलाव हुआ है। कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटा दिया गया है।
जिस कश्मीर में इतना सब कुछ हो रहा है उस कश्मीर के इतिहास के बारे में आपको बताते हैं कि, आखिर कैसे धरती के जन्नत में पाकिस्तान के बंटवारे के बाद से हालात कभी सामान्य नहीं रहे।
मुस्लिम बहुल इस प्रदेश के राजा हरि सिंह थे। यहां उन्हीं का सिक्का चलता था। राजा हरि सिंह कश्मीर को ना ही पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे और ना ही भारत में मिलाना चाहते थे। वो इसे अलग देश बनाना चाहते थे। वक्त के से साथ हालात ने ऐसी करवट ली कि राजा हरि सिंह को कश्मीर को भारत के नाम करना पड़ा। देश की आजादी के बाद महाराजा हरि सिंह जम्मू-कश्मीर को एक स्वतंत्र देश घोषित करने की योजना बना रहे थे। इसी वक्त पाकिस्तान ने यहां कब्जे के लिए कबीलाइयों को आगे बढ़ने का आदेश दे दिया। कबीलाइयों ने कश्मीर में बहुत उत्पात मचाया। उन लोगों ने बिजली, सड़क और बुनियादी जरूरतों को बर्बाद कर दिया और कश्मीर की शांति को भंग कर दिया।
जिस साल देश आजाद हुआ। उसी साल लॉर्ड माउंटबेटन कश्मीर गए थे। उन्होंने वहां पर राजा हरि सिंह को ये सुझाव दिया कि वो किसी एक देश को चुन लें, लेकिन राजा हरि सिंह ने इस पर हामी नहीं भरी। कहा जाता है कि राजा हरि सिंह के रवैया को माउंबेटन भांप गए थे और वापस आ गए थे। दूसरी तरफ भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने माउंटबेटन से कहा कि अगर कश्मीर पाकिस्तान में जाना चाहता है तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। इधर हरि सिंह ये तय नहीं कर पा रहे थे कि वो क्या करें, इस बीच कश्मीर में तनाव बढ़ता जा रहा था।
कहा जाता है कि जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने के लिए वहां के अफसरों ने राजा हरि सिंह को लालच दिया। इसी सिलसिले में पाकिस्तान के अफसरों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा भी किया। लेकिन जब वो अपनी मंशा में कामयाब नहीं हुए तो नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस से पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर, 1947 को विद्रोह शुरू कर दिया। पांच दिनों में पाकिस्तान के सैनिक श्रीनगर के काफी पास आ गए। पाकिस्तानी सैनिकों के इतने करीब आने पर उन्हें डील कर पाना राजा हरि सिंह के लिए मुश्किल हो गया। हरि सिंह तुरंत ही देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से मिले। राजा हरि सिंह ने विलय पत्र जिसे इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन भी कहते हैं पर हस्ताक्षर कर दिया। उन्होंने कश्मीर को पाकिस्तानी सैनिकों से बचाने के लिए मदद मांगी। इसके बाद भारतीय सैनिक कश्मीर पहुंचे और यहां हो रहे कत्लेआम को रोकने में सफल हुए।
भारतीय जवानों ने पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ तो दिया, लेकिन तब तक कश्मीर के मुजफ्फराबाद को पाकिस्तान ने हथिया लिया था। कहा जाता है कि यहीं से दोनों राष्ट्रों के बीच दुश्मनी की दीवार और मजबूत हो गई। इस पूरे मसले को जवाहर लाल नेहरू संयुक्त राष्ट्र ले गए। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने जम्मू-कश्मीर को विवादित कहते हुए रिफरेंडम यानी जनमत संग्रह की बात कही। संयुक्त राष्ट्र ने दोनों देशों की सेनाओं को पीछे हटने को कहा, लेकिन किसी भी देश की सेना पीछे नहीं हटी। हालांकि इस दौरान कश्मीर पर भारत की पकड़ काफी मजबूत हो गई। स्थानीय नेताओं ने भारत के साथ समिलित होने के पक्ष में थे और इसह तरह से कश्मीर का भारत के साथ विलय हो गया।
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