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अलविदा 2018: इन रणनीतियों को अपनाकर राहुल गांधी बन गए सियासत के ‘सिकंदर’

सियासत में साल 2018 कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नाम रहा। राहुल गांधी 2018 में एक प्रचारक और रणनीतिकार के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष की एक मजबूत आवाज बनकर उभरे।

राहुल गांधी ने 2018 में हिंदी भाषी राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में में हुए विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी को जीत दिलाई और राजनीतिक जगह बनाई। इसका असर कुछ महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है।

राहुल गांधी ने इस साल की शुरुआत कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में की थी। पार्टी के संगठनात्मक चुनाव के बाद उनकी मां सोनिया गांधी से पिछले साल दिसंबर में उन्हें यह पद मिला था। राहुल के लिए यह पथ पंजाब और पुडुचेरी को छोड़कर उनके लिए चुनौती भरा रहा, जहां पार्टी ने सत्ता में वापसी की थी। इसके साथ ही पार्टी ने कर्नाटक में वापसी की, जहां कांग्रेस सत्तारूढ़ गठबंधन में घटक दल है। बीते चार सालों में भी पार्टी ने बीजेपी को सीधी लड़ाई में मात नहीं दी थी।

राहुल ने अपने काम की शुरुआत कमजोरियों की पहचान कर और कमियों को दूर कर नये ढंग से की। उन्होंने मोदी को उनके ही तरीके से पछाड़ने की शुरुआत की। राहुल ने सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति बढ़ाई और ट्वीट और पोस्ट के जरिए लोगों से जुड़े। उन्होंने लगातार आम आदमी के मुद्दे जैसे भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, किसानों की दुर्दशा, नोटबंदी, मूल्य वृद्धि जैसे मुद्दों पर मोदी पर निशाना साधा और भाजपा नेता को अमीरों के दोस्त बताने की कोशिश की।

राहुल ने बीजेपी को उनके ही मूल मुद्दों जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर घेरा। राहुल ने डोकलाम के समीप चीनी सेना के निर्माण कार्य पर सरकार की चुप्पी और जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से लगातार घुसपैठ पर निशाना साधा।

राहुल ने फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर लगातार नरेंद्र मोदी पर निशाना साध कर उनकी इस छवि को तोड़ने की कोशिश की कि वह ‘निजी तौर पर भ्रष्ट’ नहीं हैं। उन्होंने खुद के दम पर प्रेस वार्ता, ट्वीट, भाषणों और ‘चौकीदार चोर है’ के नारों से राफेल सौदे को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया।

उन्होंने विदेश में मोदी की प्रवासियों के बीच पहुंच का जवाब देने के लिए विदेश यात्राएं की। राहुल ने नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर के खराब क्रियान्वयन की वजह से अर्थव्यवस्था के सुस्त होने और नोटबंदी की वजह से नौकरियों में कमी आने का मुद्दा उठाया, जिस पर सरकार को रक्षात्मक रवैया अपनाने पर मजबूर होना पड़ा।

राहुल इससे पहले भी मोदी पर हमला करते रहे हैं, लेकिन पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने अपने हमले तेज कर दिए हैं। साथ ही उन्होंने संगठनात्मक मुद्दों को सुलझाया और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में अनुभव और युवाओं का समायोजन कर प्रभावशाली तरीके से बदलाव लाया।

यही वजह है कि पार्टी के पुराने नेता जैसे अंबिका सोनी, अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा को एआईसीसी की टीम में शामिल किया गया और इसके साथ ही इसमें कई युवा नेताओं जैसे जितेंद्र सिंह और आर.पी.एन. सिंह को राज्यों का प्रभारी बनाया गया है।

राहुल ने यह महसूस किया कि एनडीए को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए कांग्रेस को अन्य सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी। इसके कारण उन्होंने 2019 में खुद को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करने की रणनीति को बदला और कहा कि चुनाव बाद इस संबंध में फैसला लिया जाएगा। ये रणनीति उनके काम और दूसरी पार्टियों को बीजेपी के खिलाफ जोड़ने में कामयाब हुए।

विशाल अनौपचारिक क्षेत्र में पार्टी की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए, उन्होंने अखिल भारतीय असंगठित श्रमिक कांग्रेस का गठन किया है। उन्होंने इसके साथ ही युवाओं, महिलाओं, पेशेवरों, मछुआरों, जनजातीयों और अनुसूचित जातियों से समर्थन प्राप्त करने के लिए पार्टी के प्रयासों को बढ़ाया है। उन्होंने मतदाताओं, कार्यकर्ताओं और जमीनी स्तर के मुद्दों को बेहतरीन तरीके से समझने के लिए एक डेटा एनालिटिक्स विभाग बनाया है।

राहुल ने विभाजनकारी ताकत के तौर पर पेश करने के लिए एक हैरान करने वाला कदम उठाया था। लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान वह मोदी की ओर बढ़े और उन्हें गले लगा लिया। मोदी इसका बुरा मान गए और उन्होंने इसे ‘गले पड़ना’ करार दिया। राहुल ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि बीजेपी नेता उन्हें ‘पप्पू’ बुला सकते हैं, लेकिन वह उनकी पार्टी से नफरत नहीं करेंगे, बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से लड़ेंगे। राहुल गांधी ने पीएम मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी का हर मोर्चे पर मुंहतोड़ जवाब दिया और ये साबित कर दिया कि सिर्फ 2018 ही नहीं 2019 में सियासत के सिकंदर साबित होंगे।

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