आज से करीब 70 साल पहले जिस गिलहरी को विलुप्त मान लिया गया था, वो उड़ने वाली दुर्लभ गिलहरी उत्तराखंड के जंगलों में दिखी है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में गंगोत्री नेशनल पार्क में एक दुर्लभ गिलहरी पायी गई है। माना जा रहा है कि ये उसी प्रजाति की गिलहरी है जिसे 70 साल पहले विलुप्त घोषित कर दिया था।
आपको इस दुर्लभ गिलहरी की खासियत भी बताते हैं। इस गिलहरी की खास पहचान ये है कि यह अपने पंजे के फर को पैराशूट के रूप में इस्तेमाल कर सकती है। अपने पंजों के फर को पैराशूट की तरह इस्तेमाल करके ये 400 से 500 मीटर मीटर तक ग्लाइड कर सकती हैं।
उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के सर्वेक्षण में प्रदेश के 13 फॉरेस्ट डिवीजनों में से 18 जगहों पर यह गिलहरी देखी गई है, जबकि IUCN की रेड लिस्ट में वूली गिलहरी 70 साल पहले विलुप्त मान ली गई थी। हालांकि देहरादून वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट के साइटिंस्ट ने भागीरथ घाटी में इसके होने की बात कही है और इसके दुर्लभ फोटो भी मिले हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक यह गिलहरी ज्यादातर ओक, देवदार और शीशम के पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती हैं। सुनहरे, भूरे और स्याह रंग में उड़न गिलहरियां देखी गई हैं। कोटद्वार के लैंसडोन में 30-50 सेंटीमीटर लंबी उड़न गिलहरी भी देखी गई है। गले पर धारी होने के कारण स्थानीय लोग पट्टा बाघ भी इनको कहते । पहले इन गिलहरियां की तादात ज्यादा थी लेकिन कटते जंगल और ग्लोबल वार्मिंग के चलते इनकी तादात कम होने लगी है। अब ये वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के शेड्यूल-2 में दर्ज ।
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