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उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के इस इतिहास के बारे में जानते हैं आप?

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के बारे में ये तो सभी जानते हैं कि इसकी एक अलग धार्मिक पहचान है, लेकिन क्या इसका इतिहास आप जानते हैं।

रुद्रप्रयाग जिला कभी अविभाजित उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था। ये 16 सितंबर 1997 को चमोली, टिहरी और पौड़ी जिले के भागों को सम्मिलित कर अस्तित्व में आया था। रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगत पर स्थित है। रुद्रप्रयाग 5 प्रयागों में से एक है और अलकनंदा नदी के 5 संगमों में से एक है। इसकी भौगोकि स्थित की वजह से प्राकृतिक सौन्दर्यता इसे गिफ्ट में मिली। हालांकि इसको पहचान केदारनाथ मंदिर ने दिलाई। केदारनाथ मंदिर एक प्राचीन मंदिर है। कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवों ने कराया था और आदि शंकराचार्य द्वारा पुनर्जीवित किया गया है।

कैसे अस्तित्व में आया जिला?
रुद्रप्रयाग जिले का गठन चमोली जिले के अगस्तमुनी और उखीमठ ब्लॉक को पूरी तरह से मिलाने के साथ ही पोखरी और कर्णप्रयाग ब्लॉक का कुछ हिस्सा लेकर किया गया। टिहरी जिले का जखोली और कीर्तीनगर ब्लॉक का हिस्सा भी इसमें सम्मलित किया गया था। पौड़ी जिले के खिरसू ब्लॉक का हिस्सा भी रुद्रप्रयाग के गठन के वक्त इसमें सम्मिलित किया गया था। रुद्रप्रयाग में केदारनाथ मंदिर उत्तर में स्थित है। जबकि पूरब में मदमहेश्वर, दक्षिणी पूर्व में नगरासू और ठीक दक्षिण में श्रीनगर है। रुद्रप्रयाग जिले में 4 तहसील और 3 विकासखंड हैं।

रुद्रप्रयाग का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
केदारनाथ मंदिर ने रुद्रप्रयाग को अलग पहचान दिलाई। देश-दुनिया से लाखों लोग हर साल यहां दर्शन करने आते हैं। केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक और शिव के सबसे पवित्र हिंदू तीर्थस्थानों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि पांडवों ने केदारनाथ में तपस्या करके शिव को खुश किया था।
सबसे बड़ी आपदा झेली

रुद्रप्रयाग जिला बहुत ही खूबसूरत है, लेकिन किसी को इसकी खूबसूरती की नजर लग गई। 2013 में यहां प्रकृति ने बड़ी तबाही मचाई थी। बाढ़ और लैंडस्लाइड की वजगह से केदारनाथ में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। मंदिर के आसपास भी सब कुछ तबाह हो गया, लेकिन ऐतिहासिक मंदिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहा।

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