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अस्तित्व में आ गई उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण, जानिए गैरसैंण का पूरा इतिहास-भूगोल

उत्तराखंड में अब दो राजधानी होगी। देहरादून के बाद गैसैंण को भी राजधानी घोषित कर दिया गया है। सोमवार को इसको लेकर आदेश भी जारी कर दिया गया है।

गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी होगी। सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 2020-21 का बजट पेश किए जाने के दौरान चमोली जिले के गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने का ऐलान किया था। गैरसैंण के प्रदेश की दूसरी राजधानी बनने के बाद उत्तराखंड देश का ऐसा पांचवा राज्य बन गया है जहां दो राजधानियां हैं। आंध्र प्रदेश में 3 राजधानियों का प्रस्ताव है तो हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में 2-2 राजधानियां हैं। जम्मू-कश्मीर में भी 2 राजधानी हैं लेकिन पिछले साल इसे राज्य की सूची से हटाकर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था।

क्यों खास है गैरसैंण?

गैरसैंण उत्तराखंड के चमोली जिले में आता है और इसे नगर पंचायत का दर्जा हासिल है। गैरसैंण दो स्थानीय शब्दों से मिलकर बना है। पहला गैर और दूसरा सैंण। गैर का मतलब कुमाऊंनी और गढ़वाली दोनों भाषाओं में गहरे स्थान को कहा जाता है। जबकि सैंण शब्द का अर्थ मैदानी भू-भाग होता है। इस तरह से इसका अर्थ गैरसैंण यानी गहरे में समतल मैदानी इलाका। ये इलाका राजधानी देहरादून से करीब 260 किलोमीटर दूर है। गैरसैंण सूबे की पामीर के नाम से जानी जाने वाली दुधाटोली पहाड़ी पर है। यहां पेंसर की छोटी-छोटी पहाड़ियां फैली हुई हैं और यहीं पर रामगंगा का उद्भव हुआ है। भौगोलिक तौर पर यह इलाका उत्तराखंड के बीच में पड़ता है। इसलिए भी इसे राज्य आंदोलन के दौरान राजधानी बनाने की मांग थी।

वैसे तो गैरसैंण में स्थीय स्तर पर गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा बोली जाती है, लेकिन सरकारी काम में हिंदी और अंग्रेजी का ही इस्तेमाल होता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक गैरसैंण तहसील की आबादी 62,412 है, जिसमें 28,755 पुरुष और 33,657 महिलाएं शामिल हैं। जबकि साक्षरता दर 78.66% है।

इतिहास के पन्नों में गैरसैंण

कहा जाता है कि सातवीं शताब्दी में भारत यात्रा पर आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस क्षेत्र में ब्रह्मपुर नामक राज्य होने का जिक्र किया था। ब्रिटिश काल में 1839 में इस क्षेत्र को कुमाऊं से स्थानांतरित करते हुए नवस्थापित गढ़वाल जिले में शामिल कर लिया गया था। बाद में 20 फरवरी 1960 को चमोली के रूप में नया जिला बना दिया गया और गैरसैंण इस जिले के तहत आ गया। 1960 में वीर चंद्र सिंह गढ़वाल की सलाह पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने गैरसैंण को राजधानी के लिए ठीक माना था। हालांकि उत्तराखंड के रूप में अलग राज्य की मांग 1990 के दशक के शुरुआती सालों में शुरू हुई थी और उसके बाद से यह मांग बनी रही। गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए बाबा मोहन उत्तराखंडी 13 बार अनशन पर बैठे थे। आखिरी बार उनका अनशन 38 दिनों तक चला था। 2004 में अनशन के दौरान ही उनकी जान चली गई।

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