इंटरव्यू: मोहसिन सर ने क्यों रखी UPS की नींव, QEC को क्यों छोड़ा? सभी राज से खुद उठाया पर्दा, हुए बड़े खुलासे!
सुनहरे भविष्य के पीछे शिक्षा का सबसे अहम योगदान होता है। देश को आजाद हुए 74 साल हो चुके हैं। लेकिन देश में शिक्षा का स्तर क्या है यह किसी छिपा नहीं है। हमारे देश में 65 फीसदी बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। सरकारी स्कूलों का हाल कैसा है, इससे हर कोई वाकिफ है। इस मामले में गावों की हालत और बदतर है। ऐसे में शिक्षा के स्तर को सुधारने का बीड़ा देश के कई हिस्सों में नौजवान शिक्षकों ने उठा रखा है। उन्हीं में से एक हैं, मोहसिन खान सर। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के उसिया गांव में मोहसिन सर UPS के नाम से स्कूल चलाते हैं। वह UPS के संस्थापक हैं। UPS की बुनियाद डालने से पहले उन्होंने कुछ स्कूलों में शिक्षक के तौर पर पढ़ाया। अच्छी खासी नौकरी को छोड़कर उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र को चुना। उनका मकसद बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। नौकरी छोड़ शिक्षा के क्षेत्र को चुनने और UPS की स्थापना तक उनके साथ कई कंट्रोवर्सी हुईं। न्यूज़ नुक्कड़ की टीम ने उसने हर मुद्दे पर खुलकर बात की। मोहसिन सर ने बेबाकी से सभी सवालों के जवाब दिए। पेश है उनसे बातचीत के अंश।
सवाल: QEC को आप लोग मिलकर खड़ी कर चुके थे, उसमें आपका अहम रोल था, ऐसे में क्या ऐसी जरूरत पड़ी की आपको UPS (उसिया पब्लिक स्कूल) की शुरुआत करनी पड़ी?
जवाब: शिक्षा के क्षेत्र में आने के लिए मैं करीब 10-12 साल पहले से सोच रहा था। हमारे इलाके के जो बुद्धिजीवी हैं वे इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं। अक्सर मैं उनसे इस बारे में चर्चा किया करता था। इस दौरान एक ऐसा समय आया जब मैंने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी। इसके बाद मैं शिक्षा के क्षेत्र में चला आया। जब मैं इस क्षेत्र में आया तो यहां मेरे लिए कुछ भी आसान नहीं था। मैंने शून्य से शुरुआत की। स्कूलों में शिक्षक के तौर पर पढ़ाया, कोचिंग की। फिर हमने सोचा क्यों ना हम एक स्कूल खोलें, क्योंकि जिस स्कूल में, मैं पढ़ा रहा हूं, शायद वहां मेरा मकसद पूरा ना हो पाए। हमारा मकसद यह था कि हम एक ऐसा स्कूल खोलें जहां आला दर्जे की तालीम हो, और जब बच्चे उस स्कूल से निकलें तो वे दुनियावी ऐतबार से ऊपर तो हों ही उनके अंदर दीन का भी जज्बा हो जो आज के पढ़े लिखे लोगों के अंदर नहीं है। इस जज्बे के साथ हमने स्कूल (QEC) की शुरुआत की थी। लोगों ने हमें बहुत अच्छी प्रतिक्रिया भी दी। बाद में जो हमारे उसूल थे वो टूटने लगे। इस चीज को मैं अपनी आंखों से देख रहा था, लेकिन कुछ कर नहीं पा रहा था। मैं अपने उसूलों पर टिका हुआ था। जब उसूल टूटने लगे तो एक वक्त ऐसा आया जिसने मुझे मजबूर किया, या तो मैं अलग हो जाऊं या फिर मैं अपने उसूलों को टूटते हुए देखता रह जाऊं और मैं एक ऐसा आदमी बनकर रह जाऊं जो अपने उसूलों से समझौता कर ले। मैंने यह फैसला किया कि मैं स्कूल (QEC) से हट जाऊंगा और मैं अपने उसूलों से कोई समझौता नहीं करूंगा। मेरा जो मकसद था उसकी ओर मैं बढ़ा और फिर उसियां पब्लिक स्कूल की शुरूआत हुई। हमारा जो मकसद है उसे फिर से जिंदा करने के लिए हमने एक नहीं शुरुआत की है।
सवाल: वो कौन सा ऐसा मौका था, जिसके बाद आपको लगा कि अब आपको QEC छोड़ देना चाहिए?
जवाब: धीरे-धीरे चीजें और मौके ऐसे बन रहे थे, एक बिंदू पर जाकर लगा कि पानी नाक के ऊपर जा चुका है तो फिर मैंने स्कूल (QEC) छोड़ने का फैसला लिया। इस तरह बहुत सारी चीजें थीं, जो मरे वहां से अलविदा कहने की वजह बनीं। मिसाल के तौर पर हम लोगों ने स्लामिक उसूलों पर स्कूल (QEC) को खोला था। हमारा जो स्कूल है मुसलमानों का स्कूल है तो संस्कृति भी वही होनी चाहिए। लेकिन मैं यह देख रहा था कि स्कूल में जो चीजें फॉलो की जा रही थीं वो दूसरी बड़े स्कूलों की चीजें फॉलों की जा रही थीं। बड़े स्कूलों में क्या है? जो आसपास के स्कूल हैं, उनमें जो संस्कृति है वह संस्कृति भी हमारे यहां आ रही थी। उस संस्कृति में जो बच्चे पल-बढ़कर आगे जाएंगे वे वैसे ही होकर रह जाएंगे। स्कूल (QEC) छोड़ने की सबसे बड़ी वजहों में से यह एक थी। हमें अभिभावकों के ऊपर इतना बोझ नहीं देना चाहिए। मैं अपने सामने देखता था कि लोग एडमिशन के लिए आ रहे हैं, लोगों के ऊपर इतना बोझ पड़ जा रहा था कि वो किसी तरह से पैसे जुटाते थे। मैं एक संवेदनशील इंसान हूं, मैं लोगों की परेशनियों को समझ जाता था। यह चीजें मुझे खटकती थीं। स्कूल बढ़ रहा था और चीजें मेरे कंट्रोल से निकलती जा रही थीं। ऐसा महसूस कर रहा था जैसे कि मैं अपने अंदर ही कैद होकर रह गया हूं। आखिरकार मैंने स्कूल (QEC) को छोड़ने का फैसला ले लिया।
सवाल: कहा जाता है कि पैसों के लेनदेन और अपनी हिस्सेदारी को लेकर आपने QEC पर कई गंभीर आरोप लगाए और QEC को छोड़ दिया, इसमें कितनी सच्चाई है?
जवाब: गंभीर आरोप तो आज तक मैंने नहीं लगाया। गांव में लोग मुझसे बातें करते थे। जो सच्चाई रहती थी वहां पर मैं खामोश रहता था, जिसमें सच्चाई नहीं थी, वहां मैं लोगों को टोकता था और कहता था कि ऐसी बात नहीं है। ऐसा नहीं हो सकता कि अगर किसी की बातों को मैं ठीक नहीं मानता तो मैं झूठी अफवाह फैलाऊं। मैंने आज तक किसी तीसरे व्यक्ति से कोई गंभीर आरोप नहीं लगाया। जहां तक हिस्सेदारी और पैसे की बात है तो अगर कोई भी चीज चलती है तो उसमें पैसा एक अहम रोल अदा करता है। मैंने पैसे के लेनदेन को लेकर स्कूल (QEC) को नहीं छोड़ा। आज स्कूल को (QEC) को पांच साल हो गए। शुरूआत होने के एक साल बाद ही यह फैसला हो चुका था कि स्कूल में मेरा क्या रोल रहेगा। उस स्कूल में मेरी कोई हिस्सेदारी नहीं रहेगी, यह बात तय हो गई थी। मैंने उसे स्वीकार भी कर लिया था। अगर मैं स्वीकार नहीं किया होता तो स्कूल (QEC) वहीं पर खत्म हो गया होता या फिर बंट गया होता। मेरा मकसद कुछ और था। मैं जिस मकसद के साथ इस क्षेत्र में आया था, मेरी कोशिश यह थी कि उसे मंजिल तक पहुंचाऊं। मैंने सारी चीजें स्वीकार कर ली थीं कि स्कूल में मेरी कोई हिस्सेदारी नहीं रहेगी। कागज पर मेरा कुछ भी नही रहेगा यह भी तय हो गया था। स्कूल का आइडिया मेरा था। जो भी चीजें एक स्कूल को खड़ा करने के लिए चाहिए किसी भी स्तर पर, उन चीजों को मैंने संभाला। इसके बाद जब आप से यह कहा जाए कि कागज पर आपका कुछ भी नहीं रहेगा। मैं नहीं समझता कि कोई भी एक आम इंसान इसे स्वीकर करेगा, लेकिन मैंने स्वीकर किया। इन सारी चीजों को स्वीकार करने के तीन साल बाद मैंने स्कूल को छोड़ा। ऐसे में यह सारे आरोप बेबुनियाद हैं।
सवाल: UPS में वो कौन सी ऐसी खास बातें हैं जो उसे दूसरी स्कूलों से अलग करती हैं?
जवाब: टीचिंग का जो मसला है, मैं समझता हूं कि यह पूरी दुनिया का एक मसला है। आप यह नहीं कह सकते कि यह सिर्फ भारत का मसला है। मैं अक्सर रिसर्च करता रहता हूं। इस मसले को सुलझाने के लिए मेरी कोई हैसियत नहीं है। मैं चीजों को समझ रहा हूं। मैं आपसे यह कह रहा हूं कि आप इलाके के किसी बड़े स्कूल में जाइए। वहां पर आप बच्चों को चेक कीजिए। ऐसी क्या बात है कि जिस चीज का वादा वो (स्कूल) करते हैं, लेकिन पूरा नहीं कर पा रहे हैं। आप किसी भी स्कूल में चले जाइए और 9वीं क्लास के बच्चे से सवाल कीजिए, आप उसे पाएंगे कि वो 5वीं क्लास के लायक भी नहीं है, लेकिन वह 9वीं क्लास में पहुंच चुका होता है। इसका मतलब यह है कि उनकी (स्कूलों) क्रियाविधि गलत है। हर बच्चे को अल्लाह ने अलग-अलग जहन दिया है। हम जब एक कक्षा में बैठाकर बच्चों पढ़ाते हैं तो हम उनके साथ एक तरह से पेश आते हैं। कुछ बच्चे उसे स्वीकार कर लेते हैं और कुछ बच्चे उसे स्वीकार नहीं कर पाते। यह मसला हमारे समाने भी है। ऐसे में जो बच्चा जैसा है उसे हम उसी तरह से ट्रीट करने वाले हैं। यह काम मरे लिए भी आसान नहीं है। यह एक बड़ी चुनौती है। आर्थिक रूप से मुझे इसमें नुकसान होने वाला है। जो बच्चा जिस स्तर का है उसके स्तर पर जाकर हम उसका विकास कराएंगे। नजर उठाकर देखिए जो भी मुसलमानों का मैनेजमेंट है, उसमें कहीं स्लामिक मूल्य और संस्कृति नजर आती है? आप देखेंगे कि बिलकुल भी नजर नहीं आता, बल्कि वह तो ईसाइयों से भी एक कदम बढ़कर नजर आते हैं। यह गारंटी है कि जो बच्चा हमारे पास रह लेगा उसके अंदर स्लामिक मूल्य और संस्कृति 100 फीसदी आएंगे ही आएंगे। जो छोटे बच्चे होते हैं उनका मन स्लेट की तरह होता है। उस पर जो भी आप लिख देंगे वो जिंदगीभर रह जाता है। यही दो चीजें हमारे लिए खास हैं।
सवाल: UPS के बच्चों को आप कौन सी ऐसी सुविधाएं देने वाले हैं, जो दूसरे स्कूलों से अलग होंगी?
जवाब: मैं चाहता हूं कि अभिभावकों पर आर्थिक बोझ ना पड़े। यही वजह है कि मैंने NCERT की किताबें कक्षा एक से लेकर ऊपर तक लागू किया है। NCERT की किताबें 10 गुनी सस्ती हैं। NCERT की किताबों में सिलेबस का बोझ नहीं है। दूसरी किताबों में सालभर में भी सिलेबस खत्म नहीं हो पाता। NCERT का सिलेबस बहुत संक्षिप्त होता है, कम होता है, लेकिन अच्छा होता है। बच्चों को समझाने के लिए हमें अच्छा समय मिलेगा। बच्चे सारी चीजें याद कर लेते हैं। अच्छे नंबर भी लाते हैं। लेकिन बच्चों में क्यों और कैसे जैसे सवाल नहीं पनप पाते। यह मसला पूरी दुनिया का है। इसी चीज को हमें बच्चों में पैदा करना है।
सवाल: UPS के शिक्षक बाकी के स्कूलों से कितने अलग हैं, उनके चयन के समय आप किन बातों का ख्याल रखते हैं?
जवाब: शिक्षकों पर ही सबकुछ निर्भर करता है। मैं अगर अच्छे से पढ़ा लेता हूं, मेरे पढ़ाने से पूरा स्कूल आगे नहीं बढ़ सकता। पूरी की पूरी टीम बेहतर होनी चाहिए। मैं नहीं समझता कि 10वीं क्लास के बच्चों को पढ़ाने के लिए जहीन आदमी चाहिए। हां अपरोच चाहिए। पढ़ाने का अपरोच और जुनून यह दो चीजें होनी चाहिए। मैंने जिन लोगों को UPS में पढ़ाने के लिए चुना है, उनके पास अपरोच है या नहीं, अभी तो बहुत कम समय हुआ है, लेकिन उनके अंदर जुनून है। वह चाहतें कि इस क्षेत्र में वे कुछ अच्छा करें। वह जब पढ़ा रहे होते हैं तो उन्हें मजा आता है। अगर अपने पेशे से आपको प्यार है तो जाहिर सी बात है कि आप उसमें अच्छा करेंगे। रही बात अपरोच की तो टीचर मेरे साथ हैं तो उनमें भी अपरोच आएगा ही। हम इन चीजों पर ध्यान देंगे, ट्रेनिंग देंगे।
सवाल: आपकी सोच और आपका मयार दूसरे शिक्षकों से अलग है, लेकिन इसकी गारंटी आप कैसे देंगे कि बाकी के शिक्षक भी आप जितना ही बेहतर काम करेंगे?
जवाब: मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि बाकी के शिक्षक मेरे जैसा काम नहीं कर सकते। यह सत्य है। शिक्षक सैलरी बेस्ड होंगे। मेरे जैसे तो नहीं कर सकते। उनके अंदर जुनून है। अपने पेशे से प्यार हो तो हो सकता है वह बढ़कर भी करें।
सवाल: लोग कहते हैं कि आप बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, आप IIT की बातें करतें, बच्चे AMU, BHU और हिंदुस्तान के दूसरे यूनिवसिर्टी में पहुंचे, इसके लिए आप कोशिश नहीं करते, इस पर क्या कहेंगे?
जवाब: बीएचयू, एएमयू या फिर जामिया, यह यूनिवर्सिटी में टॉप पर हैं। मैं पढ़ाई की बात करता हूं, गुणवत्ता की बात करता हूं, मैं चाहता हूं कि बच्चों के अंदर क्षमता पैदा हो। मैं बच्चों के अंदर क्षमता पैदा कर दूं तो बच्चे खुद ही बड़ी यूनिवर्सिटी में चले जाएंगे। मेरे रोकने से वे नहीं रुकने वाले। यह तो आरोप अपने आप में बेबुनिया है। जो शख्स पढ़ाई की बात करे वह एएमयू का विरोध क्यों करेगा? हमारे यहां ट्रेंड बना हुआ है कि बच्चा कक्षा एक में है और अभिभावक इस बात के लिए पागल हुए जा रहे हैं कि किसी तरह से उनके बच्चे का एडमिशन एएमयू में हो जाए, 6ठीं और 9वीं क्लास में हो जाए। आप डेटा उठाइए, इस इलाके से जो कक्षा एक, 5वीं या 9वीं क्लास में एडमिशन के लिए गए हैं उनमें कितने प्रतिशत बच्चों का इंजीनियरिंग और मेडिकल में दाखिला हुआ है? शायद एक या दो। मेरा यह कहना है कि बच्चों के अंदर आप क्षमता पैद करने पर जोर दीजिए। यह नहीं कि कक्षा एक में, 5वीं और 9वीं क्लास में एडमिशन कराने पर जोर। 9वीं क्लास में एडमिशन होने के बाद आपने 10वीं और 12वीं कक्षा वहां से पास की, लेकिन आप मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा ही नहीं निकाल पाए। सवाल यह है कि आप एएमयू से 12वीं क्लास की डिग्री लेकर क्या कर लेंगे? कम से कम कक्षा 10 तक तो यहा पढ़ाएं और इस बात पर जोर दें कि बच्चों के अंदर क्षमता पैदा हो, ताकि बच्चा इंजीनियरिंग या फिर मेडिकल में जाए। मैं हमेशा इस चीज पर जोर देता हूं। मैं टॉप पर देख रहा हूं और अभिभावक नीचे देख रहे हैं। नीचे देखकर वह नीचे ही रह जाते हैं।
सवाल: इलाके के लोगों के साथ देश और दुनिया को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
जवाब: देश और दुनिया को संदेश देने लायक मेरी कोई हैसियत तो नहीं है। लेकिन कमसार को मेरा संदेश पहुंच जाए तो यह बड़ी बात होगी। हमारे यहां शिक्षा की तरफ रुझान है। हर आदमी चाहता है कि हमारा बच्चा इंजीनियर और डॉक्टर बने, लेकिन अभिभावकों को यह समझना होगा कि किस तरीके से बने। यह बात अभिभावकों को नहीं पता है। यह तो स्कूल और शिक्षक बताएंगे। शिक्षक और स्कूल यह काम करने में अभी तक तो फेल हैं। मैं कमसार के आम आदमी को यही राय दूंगा कि जब तक आप नहीं चाहेंगे, आपके अंदर जुनून नहीं होगा तब तक आपका बच्चा कुछ नहीं कर पाएगा। अगर आपके बच्चे के अंदर जुनून नहीं है तो वह कुछ नहीं कर पाएगा। अभिभावकों को अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागना है। आप अगर नहीं करेंगे तो कोई कुछ नहीं कर पाएगा। बच्चे को जो बनाना है वो बनाइए। दुनिया में जितना ऊपर ले जाना है उतना ऊपर ले जाइए, लेकिन यह याद रखिए कि उसके अंदर अगर स्लामिक मूल्य नहीं हैं तो आप समझिए कि सब बेकार है। इसका नतीजा इसी दुनिया में दिख जाएगा। जब आप बूढे होंगे तो बच्चे आपको फिर दिखा देंगे कि आपने बचपन में जिन मूल्यों को डाला था, वो स्लामिक हैं तो बुढ़ापे में आपको दिखेगा। नहीं डाला है तो वो भी आपको दिखेगा।
सवाल: अगर मैं पूछूं कि वो 5 वादे जो आप अपने से और इस इलाके लोगों से करना चाहेंगे वो क्या हैं?
जवाब: मैंने अपना टारगेट रखा है कि 5, 10 और 15 साल बाद मैं कहां हूंगा। मैंने जो अपना फाइनल टारगेट रखा है वह 15 साल का रखा है। जो बच्चा हमारे यहां नर्सरी में आएगा, उस पर हमने अपना टारगेट रखा है। यह मेरा सपना है। इसी गांव से हमारे बच्चे टॉप मेडिकल और इंजीनियरिंग में चुने जाएंगे। यह हमारा 15 साल का टारगेट है। एक साल में यह दावा बिलकुल भी नहीं करूंगा कि जो बच्चे हमारे यहां आ रहे उनका एडमिशन मैं एएमयू में करा दूंगा। पांच साल में आपको अच्छे खासे बदलाव दिखेंगे। हमारे बच्चे पांच साल के अंदर फर्टेदार इंग्लिश बोलते हुए दिखाई देंगे। 10 साल के अंदर उनके अंदर अरबी बोलने और समझने की क्षमता पैदा हो जाएगी। इसके बाद इसी गांव से मेडिकल और इंजीनियरिंग में बच्चों का चयन होगा। यह मेरा लोगों से वादा है। मैं मेहनत करूंगा, नतीजा मेरे हाथों में नहीं है।